________________
:59
जक
)
)
)
)
9999995))))))))))))))))5555555555555555555555
ॐ श्रुतज्ञानी उपयोग सहित सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है। इसी प्रकार काल से, भाव से उपयुक्त
(उपयोगयुक्त) श्रुतज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है। ___129. [Q.] Bhante ! How wide is the scope (vishaya) of Shrut-jnana . (scriptural knowledge)?
[Ans.] Gautam ! In brief the scope (vishaya) of Shrut-jnana (scriptural knowledge) has four domains—those related to substance or
matter (dravya), area or space (kshetra), time (kaal) and state or mode 41 (bhaava). As to substance, a living being with involvement (upayoga) in și
scriptural knowledge knows and sees in detail all substances. As to area, a living being with involvement (upayoga) in scriptural knowledge knows and sees in detail all areas. In the same way he also knows and sees all time and all states in detail.
विवेचन : श्रुतज्ञान का विषय-श्रुतज्ञानी (सम्पूर्ण दस पूर्वधर आदि श्रुतकेवली) उपयोगयुक्त होकर धर्मास्तिकाय आदि सभी द्रव्यों को विशेष रूप से जानता है तथा श्रुतानुसारी अचक्षु (मानस) दर्शन द्वारा सभी अभिलाप्य द्रव्यों को देखता है। इसी प्रकार क्षेत्रादि के विषय में भी जानना चाहिए। भाव से उपयोगयुक्त र श्रतज्ञानी औदयिक आदि समस्त भावों को अथवा अभिलाप्य (वक्तव्य) भावों को जानता है। यद्यपि श्रुत द्वारा अभिलाप्य भावों का अनन्तवाँ भाग ही प्रतिपादित है, तथापि प्रसंगानुप्रसंग से अभिलाप्य भाव श्रुतज्ञान के विषय म हैं। इसलिए उनकी अपेक्षा 'श्रुतज्ञानी सर्वभावों को (सामान्यतया) जानता है' ऐसा कहा गया है।
Elaboration—Scope of scriptural knowledge-A shrut-jnani (Shrut4 kevalis including the scholars of ten Purvas) with his intent and 5
involvement exhaustively knows all substances including 41 Dharmastikaaya. He sees all desired substances through scripture based mental perception. The same also holds good for space and time. Ani involved Shrut-jnani knows all or desired states including audayik (state of fruition). Although only an infinitesimal part of all states finds mention in scriptures, as the scope of scriptural knowledge is limited to desired specific states, it is stated here the he knows all states.
१३०. [प्र. ] ओहिनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? । [उ. ] गोयमा ! से समासओ चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्यओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ णं ओहिनाणी रूविदव्वाइं जाणइ पासइ जहा नंदीए जाव भावओ।
१३०. [प्र. ] भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना है ? __ [उ. ] गौतम ! अवधिज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से 5 卐 और भाव से। द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपीद्रव्यों को जानता और देखता है। (तत्पश्चात् क्षेत्र से, काल से 5
और भाव से) इत्यादि वर्णन जिस प्रकार नन्दीसूत्र में किया है, उसी प्रकार यावत् 'भाव' पर्यन्त वर्णन ॐ करना चाहिए।
)))
))
)
555555)
भगवती सूत्र (३)
(76)
Bhagavati Sutra (3)
卐495
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org