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१२५. अवेयगा जहा अकसाई । (सूत्र १२३ )
१२५. अवेदक (वेदरहित ) जीवों का कथन अकषायी जीवों के समान जानना चाहिए।
125. Living beings without gender (avedak jivas) follow the pattern of
living beings without passions (akashaayi jivas).
पन्द्रहवाँ, आहारकद्वार FIFTEENTH STATE AAHAARAK
१२६. [ प्र. ] आहारगा णं भंते ! जीवा० ?
[उ. ] जहा सकसाई, नवरं केवलनाणं पि ।
१२६. [ प्र. ] भगवन् ! आहारक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ?
[ उ. ] गौतम ! आहारक जीवों का कथन सकषायी (सूत्र १२२) जीवों के समान जानना चाहिए, किन्तु इतना विशेष है कि उनमें केवलज्ञान भी पाया जाता है।
126. [Q.] Bhante ! Are living beings with food intake (aahaarak) jnani or ajnani ?
127. [Q.] Bhante ! Are living beings without food intake (anaahaarak) jnani or ajnani ?
[Ans.] Gautam ! They are jnani (endowed with right knowledge) as well as ajnani (ignorant or with wrong knowledge). The jnanis have different alternative combinations of four jnanas (other than manahparyav) and the ajnanis have different alternative combinations of three ajnanas (kinds of wrong knowledge).
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[Ans.] Gautam ! Living beings with food intake (aahaarak) follow the 5 pattern of beings with passions (sakashaaya jivas). The only difference is that they are with Keval-jnana also.
१२७. [ प्र. ] अणाहारगा णं भंते! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ? [उ. ] मणपज्जवनाणवज्जाइं नाणाई, अन्नाणाणि य तिण्णि भयणाए ।
१२७. [ प्र. ] भगवन् ! अनाहारक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ?
[ उ. ] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी है उनमें मनः पर्यवज्ञान को छोड़कर शेष चार ज्ञान और जो अज्ञानी हैं उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं।
विवेचन : १०. उपयोगद्वार - उपयोग एक तरह से ज्ञान ही है। ज्ञान दर्शन आदि शक्ति का प्रयोग करना उपयोग है। इसके दो प्रकार हैं-साकार - उपयोग और अनाकार अथवा निराकार- उपयोग। साकार का अर्थ हैविशेषता सहित बोध । यह ज्ञानोपयोग कहलाता है। साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकार के होते हैं। ज्ञानी जीवों में से कुछ जीवों में दो, कुछ जीवों में तीन, कुछ जीवों में चार और कुछ जीवों में एक मात्र
भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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