________________
355555555555555555555555555555555558
555555 5 55555 5 5F 5F 5F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
4 text and meaning both are Paramparagam (scriptural knowledge 45
acquired through lineage). Charam karma and charam nirjara-The karma experienced at the last Samaya of the Shaileshi (mountain-like) state in the 14th Gunasthaan is called charam karma (last karma) in the next Samaya these karmas are shed from soul space-points, this process of shedding is called charam nirjara (last shedding. केवली के प्रकृष्ट मन, वचन को जानने-देखने में समर्थ वैमानिक देव EXALTED MIND AND EXPRESSION OF KEVALI
२९. [प्र. ] केवली णं भंते ! पणीतं मणं वा, वइं वा धारेज्जा ? [उ. ] हंता, धारेज्जा।
३०. [प्र. १] जे णं भंते ! केवली पणीयं मणं वा वई वा धारेज्जा तं णं वेमाणिया देवा जाणंति, पासंति ?
[उ. ] गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति, अत्थेगइया न जाणंति न पासंति।
[प्र. २ ] से केणटेणं जाव न जाणंति न पासंति ? __ [उ. ] गोयमा ! वेमाणिया देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-माइमिच्छादिविउववन्नगा य, * अमाईसम्मद्दिविउववनगा या तत्थ णं जे ते माईमिच्छादिद्वीउववण्णगा ते ण जाणंति ण पासंति; तत्थ णं जे 9 ते अमाईसम्मदिट्ठीउववण्णगा ते णं जाणंति, पासंति। [ से केणटेणं एवं बुच्चइ-अमाईसम्मदिट्ठी जाव
पासंति ? गोयमा ! अमाईसम्मदिट्ठी दुविहा पण्णत्ता-अणंतरोववण्णगा य, परंपरोववण्णगा य; तत्थ णं ॐ अणंतरोववण्णगा ण जाणंति, परंपरोववण्णगा जाणंति। से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ-परंपरोववण्णग.
जाव-जाणंति ? गोयमा ! परंपरोववण्णगा दुविहा पण्णत्ता-पज्जत्तगा य, अपज्जत्तगा य; पज्जत्तगा
जाणंति, अपज्जत्तगा ण जाणंति।] एवं अणंतर-परंपर-पज्जत्ताऽपज्जत्ता य उवउत्ता अणुवउत्ता। तत्थ णं ॐ जे ते उवउत्ता ते जाणंति पासंति। से तेणठेणं०, तं चेव।
२९.[प्र. ] भगवन् ! क्या केवली भगवान प्रकृष्ट (प्रशस्त) मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करते हैं ? [उ. ] हाँ, गौतम ! धारण करते हैं।
३०. [प्र. १ ] भगवन् ! केवली जिस प्रकार के प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करते हैं, क्या उसे वैमानिक देव जानते-देखते हैं ?
[उ. ] गौतम ! कितने ही (वैमानिक देव उसे) जानते-देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते-देखते।
[प्र. २ ] भगवन् ! कितने ही देव जानते-देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते-देखते; ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? ॐ [उ. ] गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के हैं-यथा-मायी-मिथ्यादृष्टि रूप से उत्पन्न और अमायी ऊ सम्यग्दृष्टि रूप से उत्पन्न। [इन दोनों में से जो मायी-मिथ्यादृष्टि रूप से उत्पन्न हुए हैं, वे (वैमानिक देव
听听听听听听听听听听听听听听听 55555555 55555555 FF FFFFFFFFFFFFFFFFm
भगवती सूत्र (२)
(64)
Bhagavati Sutra (2)
四步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步555555559
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org