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but only Paramparagam (scriptural knowledge acquired through lineage). (Illustrated Anuyogadvar Sutra-2, aphorism- 436-470 )
२७. [ प्र.] केवली णं भंते ! चरमकम्मं वा चरमनिज्जरं वा जाणति, पासति ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! जाणति, पासति ।
२७. [.] भगवन् ! क्या केवली मनुष्य चरम कर्म को अथवा चरम निर्जरा को जानता देखता है ? २७. [ उ. ] हाँ, गौतम ! केवली चरम कर्म को या चरम निर्जरा को जानता देखता है।
27. [Q.] Bhante ! Does the omniscient (Kevali) know and see the last karma (charam karma) or last shedding (charam nirjara ) ?
[Ans.] Yes, Gautam ! he knows and sees.
२८. [प्र. ] जहा णं भंते! केवली चरमकम्मं वा०, जहा णं अंतकरेणं वा आलावगो तहा चरमकम्मेणं वि अपरिसेसिओ णेयव्वो ।
२८. [प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार केवली चरम कर्म को या चरम निर्जरा को जाता - देखता है, क्या उसी तरह छद्मस्थ भी ( उनको ) यावत् जानता - देखता है ?
[.] गौतम ! जिस प्रकार 'अन्तकर' के विषय में आलापक कहा था, उसी प्रकार 'चरम कर्म' का पूरा आलापक समझना चाहिए।
28. [Q.] Bhante ! As the omniscient (Kevali) knows and sees the last karma (charam karma) or last shedding (charam nirjara), in the same way does a chhadmasth (a person with finite cognition) also know and see them?
[Ans.] Like the statement about antakar, the complete statement should be repeated for last shedding.
विवेचन : प्रमाण- चार प्रमाण तथा तीन प्रकार के आगम का विशेष अर्थ अनुयोगद्वार, भाग १ से जानना चाहिए। सूत्रों का गुम्फन करने वाले गणधरों के लिए सूत्र आत्मागम है, अर्थ का ज्ञान तीर्थंकरों से प्राप्त होता है। अतः गणधर के लिए अर्थ अनन्तरागम है, गणधरों के शिष्यों के लिए सूत्र व अर्थ दोनों ही परम्परागम हैं। चरम कर्म एवं चरम निर्जरा-चौदहवें गुणस्थानवर्ती शैलेशी (अयोगी) अवस्था के अन्तिम समय में जिस कर्म का अनुभव हो, उसे चरम कर्म तथा उसके अनन्तर समय में (शीघ्र ही ) जो कर्म जीवप्रदेशों से झड़ जाते हैं, उसे चरम निर्जरा कहते हैं ।
Elaboration-Pramaan-For the relevant meaning of four types of pramaan and three types of Agam refer to Anuyogadvar Sutra. For Ganadhars, compilers of scriptures (Sutra), the canons are Atmagam (self-acquired scriptural knowledge). As the meaning is given by Tirthankar it is Anantaragam (scriptural knowledge acquired in immediate succession) for Ganadhars. For the disciples of Ganadhars पंचम शतक : चतुर्थ उद्देशक
Fifth Shatak: Fourth Lesson
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