________________
फ्र
केवली के प्रकृष्ट- मन-वचन को) नहीं जानते-देखते तथा जो अमायी - सम्यग्दृष्टि रूप से उत्पन्न हुए हैं, वे जानते-देखते हैं।
अमायी- सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव जानते और देखते हैं, ऐसा कहने का क्या कारण है ?
हे गौतम! अमायी - सम्यग्दृष्टि देव दो प्रकार के कहे गये हैं- यथा - अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक । इनमें जो अनन्तरोपपन्नक हैं, वे नहीं जानते और नहीं देखते हैं और जो परम्परोपपन्नक हैं, वे जानते और देखते हैं ।
हे भगवन् ! 'परम्परोपपन्नक देव जानते और देखते हैं'- ऐसा कहने का क्या कारण है ?
I
हे गौतम ! परम्परोपपन्नक देव दो प्रकार के कहे गये हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त । जो पर्याप्त हैं, वे जानते और देखते हैं और जो अपर्याप्त हैं, वे नहीं जानते और नहीं देखते हैं ।'
इसी तरह अनन्तरोपपन्नक - परम्परोपपन्नक, पर्याप्त - अपर्याप्त एवं उपयोगयुक्त (उपयुक्त) - उपयोगरहित (अनुपयुक्त) इस प्रकार के वैमानिक देवों में से जो उपयोगयुक्त वैमानिक देव हैं, वे ही (केवली के प्रकृष्ट मन एवं वचन को ) जानते-देखते हैं। इसी कारण से ऐसा कहा गया है कि कितने ही वैमानिक देव जानते-देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते-देखते ।
29. [Q.] Bhante ! Does the omniscient (Kevali) hold an exalted mind and expression (vachan ) ?
[Ans.] Yes, Gautam ! He does.
30. [Q. 1] Bhante ! Do the Vaimanik gods know and see that the omniscient (Kevali) holds an exalted mind and expression (vachan ) ?
[Ans.] Gautam ! Some of them know and see and some do not know and see.
[Q. 2] Bhante ! Why is it so that some of them know and see and some do not know and see?
[Ans.] Gautam ! Vaimanik gods are of two types - Born as deceitful and unrighteous (maayi-mithyadrishti) and deceit-free and righteous (amaayi-samyagdrishti). Of these those born as deceitful and unrighteous (maayi-mithyadrishti) do not know and see (the exalted mind and expression of Kevali) and deceit-free and righteous (amaayisamyagdrishti) do know and see.
Why is it said that deceit-free and righteous (amaayi-samyagdrishti) gods do know and see?
Gautam ! Deceit - free and righteous (amaayi-samyagdrishti) gods are of two kinds-those born continuously without a time gap (anantaropapannak) and those born with a gap of time
Fifth Shatak: Fourth Lesson
| पंचम शतक: चतुर्थ उद्देशक
(65)
फफफफफफफफफफ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org