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transformed due to truthful activity of mind (satya manah-prayoga parinat) and the other due to non-truthful-non-untruthful activity of 5 5 mind (asatya-amrisha manah-prayoga parinat), or ( 8 ) one of these substances could be transformed due to untruthful activity of mind (mrisha manah-prayoga parinat) the other due to truthful-untruthful 5 activity of mind (satya-mrisha manah-prayoga parinat), or (9) one of these substances could be transformed due to untruthful activity of mind F (mrisha manah-prayoga parinat ) the other due to non-truthful-non- 5 untruthful activity of mind (asatya-amrisha manah-prayoga parinat), or 卐
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फ्र ( 10 ) one of these substances could be transformed due to truthful - 5 untruthful activity of mind (satya-mrisha manah-prayoga parinat ) the 5 5 other due to non-truthful-non-untruthful activity of mind (asatya - 5 5 amrisha manah-prayoga parinat).
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卐 ८३. [प्र. ] जइ सच्चमणप्पओगपरिणया किं आरंभसच्चमणप्पयोगपरिणया जाव असमारंभसच्चमणप्पयोगपरिणया ?
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[उ.] गोयमा ! आरंभ - सच्चमणप्पयोगपरिणया वा जाव असमारंभ - सच्चमणप्पयोगपरिणया वा । फ अहवेगे आरंभ - सच्चमणप्पयोगपरिणए, एगे अणारंभ - सच्चमणप्पयोगपरिणए । एवं एएणं गमेणं संजोएणं नेयव्वं । सव्वे संयोगा जत्थ जत्तिया उट्ठेति ते भाणियव्वा जाव सव्वद्धसिद्ध त्ति ।
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८३. [ प्र. ] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) सत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं। 'क्या वे आरम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं या अनारम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा संरम्भ (सारम्भ) सत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं, या असंरम्भ (असारम्भ) सत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा समारम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं या असमारम्भसत्यमनः प्रयोग परिणत होते हैं ?
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[उ.] गौतम ! वे दो द्रव्य ( १ - ६ ) आरम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा यावत् असमारम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं; अथवा एक द्रव्य आरम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होता है और 5 दूसरा अनारम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणत होता है; इसी प्रकार इस गम (पाठ) के अनुसार द्विकसंयोगी भंग 5 करने चाहिए । जहाँ जितने भी द्विकसंयोग हो सकें, उतने सभी यहाँ कहने चाहिए यावत् सर्वार्थसिद्ध 5 वैमानिक देव - पर्यन्त कहने चाहिए।
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卐 83. [Q.] Bhante ! If two substances are transformed due to truthful 5 conscious activity of mind (satya manah-prayoga parinat), then are they 5 transformed due to truthful sinning conscious activity of mind (aarambh फ्र satya manah-prayoga parinat), truthful conscious activity of mind to resolve to sin (samrambh satya manah-prayoga parinat), truthful tormenting conscious activity of mind (samaarambh satya manahprayoga parinat), truthful non-sinning conscious activity of mind अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक
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Eighth Shatak: First Lesson
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