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३९. एवं जहाऽऽणुपुब्बीए नेयव्वं जाव जे पज्जत्तासव्वट्टसिद्ध अणुत्तरोववाइय जाव परिणया ते वण्णओ 5 5 कालवण्णपरिणया वि जाव आयतसंठाणपरिणया वि । दंडगा ६ ।
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सप्तम दण्डक SEVENTH DANDAK
(इस दण्डक में औदारिक आदि पाँच शरीर तथा वर्ण-गंध आदि के साथ कथन किया गया है ।)
[This section describes the aforesaid beings in context of five types of bodies including audarik and constitution including appearance (colour), 5 smell, taste and touch.]
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३९. इसी प्रकार क्रमशः सभी (पूर्वोक्त) के विषय में जानना चाहिए। यावत् जो पुद्गल पर्याप्त - सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक देवपंचेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण रूप में यावत् संस्थान से आयत संस्थान तक परिणत हैं । [ छठा दण्डक पूर्ण हुआ। ]
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४०. [ १ ] जे अपजत्तासुहुमपुढविकाइय एगिंदियओरालिय- तेया- कम्मासरीरप्पओगपरिणया ते 5 वण्णओ कालवण्णपरिण्णया वि जाव आययसंठाणपरिण्णया वि । [२] जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइय एवं चैव ।
39. All the remaining ( aforesaid ) follow the same pattern... and so on up to... The matter particles (pudgala) that are paryaptak Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik Kalpateet dev panchendriya prayoga parinat pudgala (consciously transformed as five sensed bodies of Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik divine beings beyond the Kalps) all are, in fact, consciously transformed as attributes of colour, taste, touch and constitution. [Sixth Dandak Concluded]
४०. [१] जो पुद्गल
अपर्याप्तक- सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस
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5 कार्मणशरीर प्रयोग परिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत्
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卐 40. [1] The matter particles (pudgala) that are consciously transformed as underdeveloped gross physical, fiery and karmic bodies of minute one-sensed-earth-bodied beings (aparyaptak sukshma prithvikaayik ekendriya audarik-taijas-karman sharira prayoga parinat pudgala) are, in fact, consciously transformed also as attributes of black colour... and so on up to ... rectangular constitution. [2] In the same way the matter particles (pudgala) that are consciously transformed as fully developed gross physical, fiery and karmic bodies of minute one-sensed
earth-bodied beings (paryaptak sukshma prithvikaayik ekendriya
अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक
Eighth Shatak: First Lesson
आयत - संस्थान - रूप में भी परिणत हैं । [ २ ] इसी प्रकार पर्याप्तक - सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय- 5 औदारिक- तैजस-कार्मणशरीर-प्रयोग- परिणत हैं, वे भी इसी तरह वर्णादि- परिणत हैं।
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