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beyond the Kalps) all are, in fact, consciously transformed as sense organs of hearing, seeing... and so on up to... touch (shrotrendriya, chakshurindriya, ... and so on up to... sparshanendriya prayoga parinat). [Fifth Dandak Concluded]
छठा दण्डक SIXTH DANDAK
(इस दण्डक में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि संस्थान की अपेक्षा से कथन किया है।)
[This section describes the aforesaid beings in context of constitution including appearance (colour), smell, taste and touch.]
३८. [१] जे अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइय-एगिदियपयोगपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिणया वि, नील०, लोहिय०, हालिद्द०, सुक्किल। गंधओ सुडिभगंधपरिणया वि, दुब्भिगंधपरिणया वि। रसओ तित्तरसपरिणया वि, कडुयरसपरिणया वि, कसायरसपदि, अंबिलरसपदि, महुररसपदि। फासओ कक्खडफासपरि० जाव लुक्खफासपरि०। संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणया वि वट्ट० तंस० चउरंस० आययसंठाणपरिणया वि। [ २ ] जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइया एवं चेव।
३८.[१] जो पुद्गल अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण, नीले, रक्त, पीत (हारिद्र) एवं श्वेतवर्ण रूप से परिणत हैं, गन्ध से सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध रूप से परिणत हैं, रस से तीखे, कटु, काषाय (कसैले), खट्टे और मीठे; इन पाँचों रसरूप में परिणत हैं, स्पर्श से कर्कशस्पर्श यावत् रूक्षस्पर्श के रूप में परिणत हैं और संस्थान से परिमण्डल, वृत्त (गोल), त्र्यंस (तिकोन), चतुरस्र (चौकोर) और आयत (लम्बा); इन पाँचों संस्थानों के रूप में परिणत हैं।
[२] जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, उन्हें भी इसी प्रकार वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-संस्थानरूप में परिणत जानना चाहिए।
38. [1] The matter particles (pudgala) that are consciously transformed as underdeveloped bodies of minute one-sensed-earthbodied beings (aparyaptak sukshma prithvikaayik ekendriya prayoga parinat pudgala) are, in fact, consciously transformed as attributes of five colours (black, blue, red, yellow, and white), two smells (good and bad), five tastes (bitter, pungent, astringent, sour and sweet), eight touches (hard, soft, heavy, light, cold, hot, smooth and coarse), and five constitutions (sphere, circle, triangle, square and rectangle).
[2] The matter particles (pudgala) that are consciously transformed as fully developed bodies of minute one-sensed-earth-bodied beings (paryaptak sukshma prithvikaayik ekendriya prayoga parinat pudgala) are also consciously transformed as attributes of colour, taste, touch and constitution.
भगवती सूत्र (२)
(492)
Bhagavati Sutra (2)
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