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卐 ३६. [१] जे अपज्जत्ता सुहमपुढविकाइयएगिदियओरालिय-तेय-कम्मसरीरप्पयोगपरिणया ते ॥ # फासिंदियपयोगपरिणया। जे पज्जत्तासुहुम० एवं चेव। [ २ ] बादर० अपज्जत्ता एवं चेव। एवं पज्जत्तगा वि।
३६. [१] जो पुद्गल अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस-कार्मणशरीर के प्रयोग-परिणत हैं, वे स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं। जो पुद्गल पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिकम एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस-कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं, वे भी स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं।
: [२] अपर्याप्तबादरकायिक एवं पर्याप्तबादर पृथ्वीकायिक-औदारिकादि शरीर तीनों के विषय में भी ॐ इस प्रकार कहना चाहिए।
36. [1] The matter particles (pudgala) that are consciously transformed as underdeveloped gross physical, fiery and karmic bodies
of minute one-sensed-earth-bodied beings (aparyaptak sukshma 45 prithvikaayik ekendriya audarik-taijas-karman prayoga parinat
pudgala) are, in fact, consciously transformed as sense organ of touch (sparshanendriya prayoga parinat). The matter particles (pudgala) that are consciously transformed as fully developed gross physical, fiery and karmic bodies of minute one-sensed-earth-bodied beings (paryaptak sukshma prithvikaayik ekendriya audarik-taijas-karman prayoga parinat pudgala) are, in fact, consciously transformed as sense organ of touch (sparshanendriya prayoga parinat). [2] The same should be repeated for underdeveloped and fully developed gross physical (etc.) bodies of gross earth-bodied beings.
३७. एवं एएणं अभिलावेणं जस्स जइ इंदियाणि सरीराणि य ताणि भाणियव्वाणि जाव जे 卐 पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदिय-वेउब्विय-तेया-कम्मासरीरपयोगपरिणया ते सोइंदिय-चक्खिदिय जाव फासिंदियपयोगपरिणया। दंडगा ५।
३७. इस प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जिस जीव के जितनी इन्द्रियाँ और शरीर हों, उसके उतनी इन्द्रियों तथा उतने शरीरों का कथन करना चाहिए। यावत् जो पुद्गल पर्याप्तसर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक कल्पातीतदेव पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-तैजस-कार्मणशरीर-प्रयोगपरिणत हैं, वे श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं। [ पाँचवां दण्डक पूर्ण हुआ।]
37. In the same way the aforesaid statement should be repeated for all beings on the basis of the number of sense organs and body types it * has... and so on up to... The matter particles (pudgala) that are
paryaptak Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik Kalpateet dev panchendriya vaikriya-taijas-karman sharira prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as five sensed transmutable-fierykarmic bodies of Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik divine beings
अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक
(491)
Eighth Shatak: First Lesson
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