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Elaboration-This aphorism conveys that not only animate matter of 4 fire-bodies radiate light, heat, glow etc. but inanimate matter also does so. The particles of tejoleshya emitted by an angry ascetic are inanimate. (Vritti, leaf 327)
२२. तए णं से कालोदाई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नांसित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठऽट्ठम जाव अप्पाणं भावेमाणे जहा पढमसए कालासवेसियपुत्ते (स० १, उ० ९, सु० २४) जाव सब्बदुक्खप्पहीणे। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
।। सत्तमे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो॥ म २२. इसके पश्चात् वह कालोदायी अनगार श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं। , + वन्दन-नमस्कार करके बहुत-से चतुर्थ (भक्त), षष्ठ (भक्त), अष्टम (भक्त) इत्यादि तप द्वारा यावत् म अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे; यावत् प्रथम शतक के नौवें उद्देशक (सू. २४) + में वर्णित कालास्यवेशी पुत्र की तरह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।'
॥सप्तम शतक : दशम उद्देशक समाप्त ।
॥ सप्तम शतक सम्पूर्ण ॥ 22. After that ascetic Kalodayi paid homage and obeisance to 4 Shraman Bhagavan Mahavir. Then he commenced his itinerant way and enkindled his soul with numerous one day, two day, three day fasts and other austerities. And like Kalasyaveshi Putra (Chapter 1, Lesson 9, Aphorism 24) became perfected (Siddha), enlightened (buddha), ... and so on up to... ended all miseries.
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." • END OF THE TENTH LESSON OF THE SEVENTH CHAPTER •
• END OF CHAPTER SEVEN.
प्रभ955555555555555555555555555555555555555555
भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2)
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