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bodied beings, causes little harm to mobile-bodied beings but causes extensive harm to fire-bodied beings. Therefore, Kalodayi! One who lights fire is with extensive karma (etc.) and the other who extinguishes 5 fire is with litule karma (etc.) ?
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अचित्त पुद्गलों का प्रकाश LIGHT FROM INANIMATE MATTER
२०. [ प्र.] अत्थि णं भंते ! अचित्ता वि पोग्गला ओभासेंति उज्जोवेंति तवेंति पभासेंति ? [ उ. ] हंता, अत्थि ।
२०. [ प्र. ] भगवन् ! क्या अचित्त पुद्गल भी अवभासित ( प्रकाशयुक्त) होते हैं, वे वस्तुओं को 5 उद्योतित करते हैं, ताप करते हैं (या स्वयं तपते ) हैं और प्रकाश करते हैं ?
२१. [.] कतरे णं भंते! ते अचित्ता पोग्गला ओभासंति जाव पभासंति ?
[ उ. ] कालोदाई ! कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निसट्टा समाणी दूरं गंता दूरं निपतति, देसं गंता
देसं निपतति, जहिं जहिं च णं सा निपतति तहिं तहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासेंति जाव भासेंति । एते णं कालोदायी ! ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासेंति जाव पभासेंति ।
२१. [ प्र. ] भगवन् ! अचित्त होते हुए भी कौन-से पुद्गल अवभासित होते यावत् प्रकाश करते हैं ?
[ उ. ] कालोदायिन् ! क्रुद्ध (कुपित) अनगार की निकली हुई तेजोलेश्या दूर जाकर गिरती है, जाने योग्य देश (स्थान) में जाकर उस देश में गिरती है। जहाँ वह गिरती है, वहाँ अचित्त पुद्गल भी अवभासित करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं।
[ उ. ] हाँ, कालोदायिन् ! अचित्त पुद्गल भी यावत् प्रकाश करते हैं।
20. [Q.] Bhante ! Does inanimate matter also glow (have light), make things glow, produce heat or get hot and emit light?
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[Ans.] Yes, Kalodayi ! Inanimate matter also glows... and so on up to... 5 emit light.
21. [Q.] Bhante ! Although inanimate, which matter glows... and so on up to... emit light ?
[Ans.] Kalodayi ! The fire-power (tejoleshya) emitted by an angry ascetic falls at a distance and it goes to the destined place and falls there. Where it falls inanimate matter also shines there... and so on up to... emits light.
सप्तम शतक: दशम उद्देशक
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Seventh Shatak: Tenth Lesson
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विवेचन : सचित्तवत् अचित्त तेजस्काय के पुद्गल - सचित्त तेजस्काय के पुद्गल तो प्रकाश, ताप, उद्योत आदि करते ही हैं, किन्तु अचित्त पुद्गल भी अवभासित होते एवं प्रकाश, ताप, उद्योत आदि करते हैं, यह इस सूत्र का 5 आशय है। कुपित साधु द्वारा निकाली हुई तेजोलेश्या के पुद्गल अचित्त होते हैं । ( वृत्ति, पत्रांक ३२७)
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