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E 11. [Q.] Bhante ! Does this Jivastikaaya, the living entity without 99 form, acquire the demeritorious karmas that on fruition associate beings with grave consequences ?
[Ans.] Yes, it does. (In other words-only this formless Jivastikaaya gets associated with the demeritorious karmas.)
१२. एत्थ णं से कालोदाई संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुन्भं अंतिए धम्मं निसामित्तए एवं जहा खंदए (श० २, उ० १, सू० ३२४५) तहेव पवइए, तहेव एक्कारस अंगाई जाव विहरति।
१२. (भगवान द्वारा समाधान पाकर) कालोदायी बोधि को प्राप्त हुआ। फिर उसने श्रमण भगवान ॐ महावीर को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके उसने इस प्रकार कहा-'भगवन् ! मैं फ़ आपसे धर्म-श्रवण करना चाहता हैं। भगवान ने उसे धर्म-श्रवण कराया। फिर जैसे स्कन्दक ने भगवान
से प्रव्रज्या अंगीकार की थी (श. २, उ. १, सू. ३२-४५) वैसे ही कालोदायी भगवान के पास प्रव्रजित ॐ हुआ। उसी प्रकार उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया; यावत् कालोदायी अनगार विचरण म करने लगे।
12. (On getting this answer from Bhagavan) Kalodayi got enlightened. He then paid homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir and said,"Bhante ! I want to listen to your sermon." Bhagavan gave his sermon. After that Kalodayi got initiated by Bhagavan as Skandak had got (Chapter 2, Lesson 1, Aphorisms 32-45). Likewise he studied the eleven Angas... and so on up to... ascetic Kalodayi continued his itinerant way. पापकर्म और पुण्य कर्म DEMERITORIOUS KARMAS AND MERITORIOUS KARMAS
१३. तए णं समणे भगवं महावीरे अनया कयाइं रायगिहाओ णगराओ गुणसिलओ चेइयाओ पडिनिखमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।।
१४. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे, गुणसिलए चेइए। तए णं समणे भगवं महावीरे अनया कयाइ जाव समोसढे, परिसा जाव पडिगया।
१३. किसी समय श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशीलक चैत्य से निकलकर बाहर के जनपदों में विहार करते हुए विचरण करने लगे।
१४. उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। (नगर के बाहर) गुणशीलक नामक + चैत्य था। किसी समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी पुनः वहाँ पधारे यावत् उनका समवसरण लगा। म यावत् परिषद् धर्मोपदेश सुनकर लौट गई।
13. Once Shraman Bhagavan Mahavir moved out from Gunasheela Chaitya and commenced his wanderings in inhabited areas away from Rajagriha.
सप्तम शतक : दशम उद्देशक
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Seventh Shatak: Tenth Lesson
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