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Si "O Gautam ! Your religious teacher and preceptor Shraman
Jnataputra describes five Astikaaya (existent conglamorative ontological categories or entities)-Dharmastikaaya (motion entity)... and so on up to... Akashastikaaya (space entity)... and so on up to... Only Pudgalastikaaya (matter entity) is with form (rupi) and non-living entity
(ajiva kaaya) according to Shraman Jnataputra." They told all about Eh their aforesaid discussions up to this point and then asked—“O Bhadant
Gautam ! How is it so ?" + [२ ] तए णं से भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं वयासी- “नो खलु वयं देवाणुप्पिया ! अत्थिभावं
'नत्थि' त्ति वयामो, नथिभावं ‘अत्थि' त्ति वयामो। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! सव्वं अत्थिभावं ‘अत्थी' ति ॐ वयामो, सव् नत्थिभावं 'नत्थी' ति वयामो। तं चेयसा खलु तुब्भे देवाणुप्पिया ! एयमढे सयमेव ॥
पच्चुविक्खह" त्ति कटु ते अन्नउत्थिए एवं वयति। एवं वइत्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे एवं ॐ जहा नियंठुद्देसए (श० २, उ० ५, सू० २५ [१]) जाव भत्त-पाणं पडिदंसेति, भत्त-पाणं पडिदंसेत्ता ॥
समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने जाव पज्जुवासति। 卐 [२] तब भगवान गौतम ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार कहा- 'हे देवानुप्रियो ! हम ‘अस्तिभाव' :
(विद्यमान) को 'नास्ति' (नहीं) नहीं कहते, इसी प्रकार 'नास्तिभाव' (अविद्यमान) को 'अस्ति' (है) नहीं ॐ कहते। हे देवानुप्रियो ! हम सभी अस्तिभावों को अस्ति (है), और समस्त नास्तिभावों को नास्ति (नहीं है क है), कहते हैं। अतः हे देवानुप्रियो ! आप स्वयं अपने ज्ञान (अथवा मन) से इस बात पर अनुप्रेक्षणक
(चिन्तन) करिये।' इस प्रकार कहकर श्री गौतम स्वामी गुणशीलक चैत्य में श्रमण भगवान महावीर के पास आये। और द्वितीय शतक के निर्ग्रन्थ उद्देशक (सू० २५-१) में बताये अनुसार आहार-पानी ॥ भगवान को दिखलाया दिखलाकर श्रमण भगवान को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके यथावत् उपासना करने लगे।
[2] Then Bhagavan Gautam replied to those heretics—“Beloved of gods ! We do not call existent state (astibhaava) as nonexistent (naasti). In the same way we do not call nonexistent state (naastibhaava) as existent (asti). We call all existent states as existent and all nonexistent states as nonexistent. Therefore O Beloved of gods ! You should apply your own wisdom and ponder over this on your own." Saying thus Gautam Swami returned to Shraman Bhagavan Mahavir in Gunasheelak Chaitya. There (as mentioned in Aphorism 25/1 of Nirgranth lesson of Chapter 2) he showed the collected alms to Bhagavan and commenced his worship after due homage and obeisance.
७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे महाकहापडिवन्ने यावि होत्था, कालोदाई य तं 卐 देसं हव्वमागए।
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भगवती सूत्र (२) 8595995
Bhagavati Sutra (2) ))))))))) )))6958
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