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म [२ ] गौतम ! उस काल और उस समय में वैशाली नाम की नगरी थी। उस वैशाली नगरी में है
'वरुण' नामक नागनतृक (नाग नामक गृहस्थ का नाती = दौहित्र या पौत्र) रहता था। वह धनाढ्य
यावत् किसी के आगे न दबने वाला) व्यक्ति था। वह श्रमणोपासक था, और जीवाजीवादि तत्त्वों का के ज्ञाता था, वह आहारादि द्वारा श्रमणनिर्ग्रन्थों को प्रतिलाभित करता हुआ तथा निरन्तर छठ-छठ की
(बेले की) तपस्या द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरण करता था। + 20. [Q. 1] Bhante ! Many people say... and so on up to... propagate $1 that people fighting face to face in some big or small war, and getting
injured, when at the time of death abandon this body they are reborn as gods in any of the divine realms. Bhante ! Is it possible?
(Ans.) Gautam ! Many people say... and so on up to... propagate that people fighting in war are reborn in divine realms. Those who say
thus are wrong. Gautam ! I say... and so on up to... propagate that, ki [2] Gautam ! During that period of time there was a city named
Vaishali. In that city lived Varun, the grandson of householder Naag (Naag-naptrik). He was affluent... and so on up to... could not be
subdued. He was a shramanopasak (devotee of shramans) and had 4i complete knowledge of fundamentals including the living and the non$1 living. He lived enkindling his soul by serving Shraman-nirgranths (Jain + ascetics) and observing a series of two day fasts. 3 [३] तए णं से वरुणे णागनत्तुए अन्नया कयाई रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं
रहमुसले संगामे आणत्ते समाणे छट्ठभत्तिए, अट्ठमभत्तं अणुवढेति, अट्ठमभत्तं अणुवतॄत्ता कोडु बियपुरिसे ॐ सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! चातुग्घंटे आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेह हयम गय-रहपवर जाव सन्नाहेत्ता मम एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। म [४] तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उवट्ठाति, हय
गय-रह जाव सन्नाहेंति, सनाहित्ता जेणेव वरुणे नागनत्तुए जाव पच्चप्पिणंति। म [३] एक बार राजा के आदेश से, गण के अभियोग से तथा बल (बलवान्-व्यक्ति) के अभियोग
से वरुण नागनतृक को रथमूसल संग्राम में जाने की आज्ञा दी गई। तब उसने षष्ठभक्त को बढ़ाकर ॐ अष्टभक्त तप कर लिया। तेले की तपस्या करके उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार + कहा-“हे देवानुप्रियो ! चार घण्टों वाला अश्वरथ, सामग्रीयुक्त तैयार करके शीघ्र उपस्थित करो। साथ
ही अश्व, हाथी, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो, यह सब सुसज्जित म करके मेरी आज्ञा मुझे वापस सौंपी।
[४] तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसकी आज्ञा स्वीकार करके यथाशीघ्र छत्रसहित एवं म ध्वजासहित चार घण्टाओं वाला अश्वरथ, तैयार करके उपस्थित किया। साथ ही घोड़े, हाथी, रथ एवं
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भगवती सूत्र (२)
(444)
Bhagavati Sutra (2)
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