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[उ. ] गोयमा ! सक्के देविंदे देवराया पुव्वसंगतिए, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया परियायसंगतिए, फ्र एवं खलु गोमा ! सक्के देविंदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रण्णो साहज्जं
दलइत्था ।
१९. [ प्र. ] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन दोनों ने कूणिक 5 राजा को किस कारण से सहायता ( युद्ध में सहयोग) दी ?
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[उ. ] गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र तो कूणिक राजा का पूर्वसंगतिक (पूर्वभव सम्बन्धी - कार्तिक 5 सेठ के भव में मित्र) था, और असुरेन्द्र असुरकुमार राजा चमर, कूणिक राजा का पर्यायसंगतिक (पूरण नामक तापस की अवस्था का साथी तापस) मित्र था । इसीलिए, हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र और असुरेन्द्र असुरराज चमर ने कूणिक राजा को सहायता दी।
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19. [Q.] Bhante ! Why did Shakrendra and Chamarendra help (assist in the battle) King Kunik ?
[Ans.] Gautam ! Shakrendra was a friend of King Kunik during an earlier birth (a friend during his past birth as merchant Kartik). And Chamarendra, the king of Asurs was an associate during an earlier birth (a companion hermit during his past birth as Puran hermit). That is the reason, Gautam ! Shakrendra, the king of gods and Chamarendra, the king of Asurs came to the help of King Kunik.
क्या युद्ध करते मरने पर स्वर्ग मिलता है HEAVEN ON DEATH IN WAR ?
२०. [प्र.१] बहुजणे णं भंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति जाव परूवेति - एवं खलु बहवे मणुस्सा अन्नतरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोए देवत्ता उववत्तारो भवंति से कहमेथं भंते ! एवं ?
[उ. ] गोयमा ! जं णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति जाव उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि
[ २ ] एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था । वण्णओ । तत्थ णं साली नगरीए वरुणे नामं णागनत्तुए परिवसति अड्डे जाव अपरिभूते समणोवासाए अभिगतजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे छट्ठछट्टेणं अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति । "
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२०. [ प्र. १ ] भगवन् ! बहुत-से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि-अनेक 卐 प्रकार के छोटे-बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सम्मुख रहकर लड़ते हुए आहत हुए बहुत-से 5 मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! ऐसा कैसे हो 5 सकता है ?
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[.] गौतम ! बहुत-से मनुष्य, जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि संग्राम में मारे 5 गये मनुष्य, देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहने वाले मिथ्या कहते हैं । हे गौतम! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ
सप्तम शतक नवम उद्देशक
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Seventh Shatak: Ninth Lesson 卐
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