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5 मग्गतो य से चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया एगं महं आयसं किढिणपडिरूवगं विउव्वित्ताणं चिट्ठति, एवं 5 खलु तओ इंदा संगामं संगामेंति, तं जहा- देविंदे मणुइंदे असुरिंदे य । एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया जइत्तए तहेव जाव दिसो दिसिं पडिसेहेत्था।
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१५. तदनन्तर रथमूसल संग्राम उपस्थित हुआ जानकर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। इसके बाद का सारा वर्णन महाशिलाकण्टक की तरह यहाँ कहना चाहिए। इतना विशेष है फ्र कि यहाँ 'भूतानन्द' नामक हस्तिराज (पदहस्ती) है। यावत् वह कूणिक राजा रथमूसल संग्राम में उतरा उसके आगे देवेन्द्र देवराज शक्र है, यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन कहना चाहिए। उसके पीछे असुरेन्द्र असुरराज चमर लोह के बने हुए एक महान् किठिन (बाँस - निर्मित तापस पात्र) जैसे कवच की विकुर्वणा करके खड़ा है। इस प्रकार तीन इन्द्र संग्राम करने के लिए प्रवृत्त हुए हैं । यथा - देवेन्द्र ( शक्र ), मनुजेन्द्र ( कूणिक) और असुरेन्द्र ( चमर) । अब कूणिक केवल एक हाथी से सारी शत्रु सेना को पराजित करने में समर्थ है। यावत् पहले कहे अनुसार उसने शत्रु राजाओं ( की सेना ) को दसों दिशाओं में भगा दिया।
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15. At that time knowing that Rath-musal battle was about to begin, King Kunik summoned his attendants (kautumbik purush) and so on as described about Mahashilakantak battle. The difference being that the 5 name of the elephant is Bhootanand... and so on up to ... King Kunik joined the Rath-musal battle. Ahead of him stood Shakrendra, the king of gods... and so on as already described. Behind him stood Chamar, the king of Asurs, creating an iron armour like a great Kithin (hermit-bowl made of bamboo). This way it appeared as if three Indras (kings) are ready to fight - king of gods (Shakra), king of humans (Kunik), and king of Asurs (Chamar). Now King Kunik became capable of defeating the opposing army just with one elephant... and so on up to... He put the fear of life in the minds of opposing armies and made them flee in all the ten directions (as already described).
Seventh Shatak: Ninth Lesson
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१६. [ प्र. ] से केणणं भंते ! एवं बुच्चति 'रहमुसले संगामे रहमुसले संगामे' ?
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[उ.] गोयमा ! रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए असारहिए अणारोहए समुसले फ्र महताजणक्खयं जणवहं जणप्पमद्दं जणसंवट्टकप्पं रुहिरकद्दमं करेमाणे सव्वतो समंता परिधावित्था; से णणं जाव रहमुसले संगामे ।
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१६. [ प्र. ] भगवन् ! इस 'रथमूसल संग्राम' को रथमूसल संग्राम क्यों कहा जाता है ?
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[ उ. ] गौतम ! जिस समय रथमूसल संग्राम हो रहा था, उस समय अश्वरहित, सारथिरहित और फ्र योद्धाओं से रहित एक रथ केवल मूसल सहित, अत्यन्त जनसंहार, जनवध, जन-प्रमर्दन और जनप्रलय के समान रक्त का कीचड़ करता हुआ चारों ओर दौड़ता था । इसी कारण से उस संग्राम को 'रथमूसल संग्राम' कहा गया है।
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सप्तम शतक नवम उद्देशक
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