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| चित्र परिचय-१४ ।
Illustration No. 14
रथ-मूसल संग्राम महाशिला कंटक संग्राम के पश्चात् शत्रु सेना के विनाश के लिए शक्रेन्द्र व चमरेन्द्र की सहायता से रथ-मूसल संग्राम की रचना की गई।
लोहे का एक अत्यन्त भयानक विशाल रथ बनाया गया। इस रथ में न तो घोड़े जुते थे, न कोई सारथि और न ही कोई योद्धा था। सर्वथा अश्व योद्धा-मानव रहित इस रथ के पहियों में तीक्ष्ण मूसल जैसे शस्त्र लगे थे, उनसे भयंकर स्फुलिंगचिनगारियाँ निकल रही थीं। युद्ध भूमि में दौड़ता हुआ यह रथ महाकाल की तरह अत्यन्त जन संहार कर रहा था। जिधर निकल जाता उधर ही सैनिकों को मारता हुआ युद्ध भूमि को रक्त कीचड़ से लाल कर देता। उस रथ को रोकने की क्षमता किसी मनुष्य में नहीं थी, अदृश्य देव शक्ति से यह चारों तरफ महाविनाश करता हुआ दौड़ रहा था। चेटक के अमोघ बाण भी इस रथ को नहीं रोक सके। इस कारण वैशाली गणराज्य की सेना ध्वस्त हो गई। कूणिक ने वैशाली का विध्वंस कर डाला। इस एक ही संग्राम में छियानवें लाख मनुष्य मारे गये।
-शतक ७, उ. ९, सूत्र १६-१७
RATH MUSAL BATTLE After Mahashilakantak battle another battle, Rath Musal battle, was designed with the help of Shakrendra and Chamarendra.
A large chariot-like machine was created. It neither had horses nor a driver or a warrior. On its wheels were fitted pointed mace-like weapons that emitted terrifying sparks. Moving with great speed in the battle field, it killed like the messenger of death. Whichever way it moved it left the land red and slimy with blood. Driven by invisible divine power it could not be stopped by any human effort. Even unfaltering arrows of Chetak could not stop it. Vaishali and its army both were destroyed by Kunik. This war accounted for almost one million human lives.
-Shatak-7, lesson-9, Sutra-16-17
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