________________
फ्र
फ्र
फफफफफफफफफफफफ
सप्तम शतक : अष्टम उद्देशक
SEVENTH SHATAK (Chapter Seven): EIGHTH LESSON
छद्मस्थ CHHADMASTH (THE UNRIGHTEOUS)
छद्मस्थ सिद्ध नहीं होता UNRIGHTEOUS CANNOT BE SIDDHA
१.[प्र. ] छउमत्थे णं भंते! मणूसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं ० ?
[ उ. ] एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए (सू० १२ - १८) तहा भाणियव्वं जाव अलमत्थु ।
१. [ प्र. ] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, अनन्त और शाश्वत अतीतकाल में केवल संयम द्वारा, (केवल संवर द्वारा, केवल ब्रह्मचर्य से, तथा केवल अष्ट प्रवचनमाताओं के पालन से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् उसने सर्व दुःखों का अन्त किया है ?)
5
5
[उ. ] गौतम ! यह अर्थ उचित नहीं है। इस विषय में प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक (सू. १२ - फ्र १८) में जिस प्रकार कहा है, उसी प्रकार यहाँ यावत् 'अलमत्थु' पाठ तक कहना चाहिए।
卐
卐
[Ans.] Gautam ! That is not possible. In this regard repeat the statement from Chapter 1, Lesson 1 (Aphorisms 12-18) up to almastu.
卐
1. [Q.] Bhante! In the endless eternal past has a chhadmasth person (unrighteous/ one who is short of omniscience due to residual karmic 5 bondage) been able to get perfected (Siddha ), enlightened (buddha), and so on up to... and end all miseries only by ascetic-discipline 5 (samyam)... and so on up to ... (only by blocking inflow of karmas, only by absolute celibacy or only by observing eight pravachan-mata)?
卐
फ्र
5
Elaboration-The gist of the statement under reference is that whoever got perfected (Siddha), enlightened (buddha), liberated (mukta), they all have first acquired ultimate knowledge and perception to become Arhant, Jina, or Kevali (omniscient). Only they do that and only they will do that.
हाथी और कुंथुए के समान जीव SOUL OF ELEPHANT AND INSECT
२. [ प्र. ] से णूणं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य एवं जहा रायपसेणइज्जे जाव खुड्डियं वा, महालियं वा, से तेणणं गोयमा ! जाव समे चैव जीवे ।
भगवती सूत्र ( २ )
Jain Education International
卐
विवेचन : फलितार्थ - प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशकोक्त पाठ का फलितार्थ यह है कि भूत, वर्तमान और 5 भविष्य में जितने जीव सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए हैं, होते हैं, होंगे, वे सभी उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहंत, फ्र जिन, केवली होकर ही हुए हैं, होते हैं, होंगे ।
卐
卐
5
(424)
फ्र
Bhagavati Sutra (2)
For Private & Personal Use Only
5
f
5
卐
5 5
卐
फ्र
卐
फ्र
फफफफफफफफ
फ्र
www.jainelibrary.org