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5 not able to see things below without looking (directly) at them, Gautam ! such beings, although capable, undergo involuntary experience of pain. २७. [प्र.] अत्थि णं भंते ! पभू वि पकामनिकरणं वेदणं वेदेंति ।
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[ उ. ] हंता, अत्थि ।
२७. [ प्र. ] भगवन् ! क्या ऐसा भी होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव, प्रकामनिकरण (तीव्र इच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ?
[ उ. ] हाँ, गौतम ! वेदते हैं।
27. [Q.] Bhante ! Is it possible that even when they are capable (endowed with sentience) they undergo experience of pain with intense desire?
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[Ans.] Yes, Gautam ! They do.
२८. [प्र.] कहं णं भंते ! पभू वि पकामनिकरणं वेदणं वेदेंति ?
[उ. ] गोयमा ! जे णं नो पभू समुहस्स पारं गमित्तए, जेणं नो पभू समुद्दस्स पारगयाई रुवाई पात्तिए, जेणं नो पभू देवलोगं गमित्तए, जे णं नो पभू देवलोगगयाई रुवाई पात्तिए एस णं गोमा ! पभू विपकामनिकरणं वेदणं वेदेंति ।
सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ।
॥ सत्तम सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो ॥
२८. [प्र. ] भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव, प्रकामनिकरण वेदना को किस प्रकार वेदते हैं ?
[.] गौतम ! जो समुद्र के पार जाने में समर्थ नहीं हैं, जो समुद्र के पार रहे हुए रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, जो देवलोक में जाने में समर्थ नहीं हैं, और जो देवलोक में रहे हुए रूपों को देख नहीं सकते; हे गौतम! वे समर्थ होते हुए भी प्रकामनिकरण वेदना को वेदते हैं।
28. [Q.] Bhante ! In spite of being capable (endowed with sentience ) why do they undergo experience of pain with intense desire?
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'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर गौतम स्वामी यावत् ५ विचरण करते हैं।
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[Ans.] Gautam ! Those beings who are incapable of crossing a sea, who are incapable of seeing things at the other end of the sea, who are incapable of going to divine abodes, and who are incapable of seeing things existing in divine abodes, Gautam ! Such beings, although capable (sentient), undergo experience of pain with intense desire.
भगवती सूत्र ( २ )
(422)
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Bhagavati Sutra (2)
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