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5 जिस समय में निर्जरा करते हैं, उस समय में वेदन नहीं करते । अन्य समय में वे वेदन करते हैं और
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२१. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या नैरयिक जीवों का जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय है 5 और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय है ?
[उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
[प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिकों के जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है ?
[उ.] गौतम ! नैरयिक जीव, जिस समय में वेदन करते हैं, उस समय में निर्जरा नहीं करते और
अन्य समय में निर्जरा करते हैं। उनके वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है। इस कारण से, मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है।
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२२. इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए।
21. [Q. 1] Bhante ! In case of infernal beings, what is the time of
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5 experiencing ( vedana) karma is also the time of shedding (nirjara) it ? 5
And what is the time of shedding karma is also the time of experiencing
5 it ?
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the time of experiencing is not the time of shedding? And what is the time of shedding is not the time of experiencing?
[Ans.] Gautam ! In case of infernal beings at the time of experiencing shedding is not done and at the time of shedding experiencing is not done. Experiencing is done at a different time and shedding is done at a
different time. Time of experiencing is different and that of shedding is
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5 different. That is why I say that... and so on up to ... what is the time of
shedding is not the time of experiencing.
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[Ans.] Gautam ! That is not correct.
[Q. 2] Bhante ! Why is it said that in case of infernal beings what is 5
22. The same should be repeated... and so on up to ... (all twenty four Dandaks) up to Vaimaniks.
विवेचन : वेदना और निर्जरा में अन्तर - उदयप्राप्त कर्म को भोगना 'वेदना' है। और जो कर्म भोगकर क्षय कर
दिया गया है, उसे 'वेदित रस कर्म', 'नोकर्म' निर्जरा कहते हैं। वेदना का हेतु कर्म है। इसी कारण वेदना को
( उदयप्राप्त) कर्म कहा गया है और निर्जरा को नोकर्म ( स्वत्त्वहीन कर्म) । तात्पर्य यह है कि कार्मण वर्गणा के पुद्गल सदैव विद्यमान रहते हैं, किन्तु वे सदा कर्म नहीं कहलाते । कषाय और योग के निमित्त से जीव के साथ 5 बद्ध होने पर ही उन्हें 'कर्म' संज्ञा प्राप्त होती है और वेदन के अन्तिम समय तक उसकी कर्म संज्ञा रहती है। निर्जरा होने पर वे पुद्गल 'कर्म' नहीं रहते, नोकर्म (अकर्म) हो जाते हैं।
Elaboration-Difference between Vedana and Nirjara-To experience precipitated or fructified karma is vedana. On being experienced after
Seventh Shatak: Third Lesson
सप्तम शतक : तृतीय उद्देशक
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