________________
)58
))))))
))
3555555555555555555555555555555555555555558
055555555555555555555555555
12. The same should be repeated for (all twenty four Dandaks) up to 卐 Vaimaniks.
१३. [प्र. १ ] से नूणं भंते ! जं वेदेंसु तं निजरिंसु ? जं निजरिंसु तं वेदेंसु ?
[उ.] णो इणटे समझे। _[प्र. २ ] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति 'जं वेदेंसु नो तं निजरेंसु, जं निज्जरेंसु नो तं वेदेंसु' ? ।
[उ. ] गोयमा ! कम्मं वेदेंसु, नोकम्मं निजरिंसु, से तेणटेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेंसु।
१३. [प्र. १] भगवन् ! जिन कर्मों का वेदन कर (भोग) लिया, क्या उनको निर्जीर्ण कर लिया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, क्या उनका वेदन कर लिया?
[उ. ] गौतम ! यह बात (अर्थ) शक्य नहीं है।
[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जिन कर्मों का वेदन कर लिया, उनको निर्जीर्ण नहीं किया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, उनका वेदन नहीं किया ?
[उ.] गौतम ! कर्मों का वेदन किया गया है, किन्तु निर्जीर्ण किया गया है-नोकर्मों को; इस कारण से, हे गौतम ! मैंने कहा कि यावत् उनका वेदन नहीं किया।
13. [Q. 1] Bhante ! Are the karmas that have been experienced (vedana) have also been shed (nirjara)? And the karmas that have been shed have already been experienced ?
[Ans.] Gautam ! That is not correct.
IQ. 21 Bhante ! Why is it said that the karmas that have been experienced (vedana) have not been shed (nirjara)? And the karmas that have been shed have not already been experienced ?
(Ans.] Gautam ! What is experienced (vedana) is karma (potent karma particles) but what is shed (nirjara) is no-karma (spent karma particles). That is why it is said that... and so on up to... have not already been experienced.
१४. [प्र. ] नेरइया णं भंते ! जं वेदेंसु तं निजरिंसु ? [उ.] एवं नेरइया वि। १५. एवं जाव वेमाणिया।
१४. [प्र. ] भगवन् ! नैरयिक जीवों ने जिस कर्म का वेदन कर लिया, क्या उसे निर्जीर्ण कर लिया?
[उ.] पहले कहे अनुसार नैरयिकों के विषय में भी जान लेना चाहिए। १५. इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डक में कथन करना चाहिए।
))))
55555555555))))))))
सप्तम शतक : तृतीय उद्देशक
(377)
Seventh Shatak : Third Lesson
区555555555555 FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFB
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org