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स्थावर STHAVAR (IMMOBILE BEINGS)
वनस्पतिकायिक जीवों का आहारकाल PERIOD OF INTAKE BY PLANT BODIED BEINGS १. [ प्र. ] वणस्सइकाइया णं भंते ! कं कालं सव्वप्पाहारगा वा सव्यमहाहारगा वा भवंति ?
सप्तम शतक : तृतीय उद्देशक
SEVENTH SHATAK (Chapter Seven): THIRD LESSON
[ उ. ] गोयमा ! पाउस - वरिसारत्तेसु णं एत्थ णं वणस्सइतिकाइया सव्वमहाहारगा भवंति, तदाणंतरं चणं सरदे, तयाणंतरं च णं हेमंते, तयाणंतरं च णं वसंते, तयाणंतरं च णं गिम्हे । गिम्हासु णं वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति ।
१. [ प्र. ] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव किस काल में सर्वाल्पाहारी ( सबसे थोड़ा आहार करने वाले) होते हैं और किस काल में सर्वमहाहारी (सबसे अधिक आहार करने वाले) होते हैं ?
1. [Q.] Bhante ! During what period plant-bodied beings (vanaspatikayik jivas) have least intake and during what period they have most 5 intake ?
[उ.] गौतम ! पावस ऋतु (श्रावण और भाद्रपद मास ) में तथा वर्षा ऋतु (आश्विन और कार्तिक मास) में वनस्पतिकायिक जीव (अधिक जल बरसने के कारण) सर्वमहाहारी होते हैं। इसके पश्चात् शरद् ऋतु (कार्तिक और मार्गशीर्ष मास) में, तदनन्तर हेमन्त ऋतु (पौष और माघ मास ) में, इसके बाद वसन्त ऋतु (फाल्गुन और चैत्र मास ) में और तत्पश्चात् ग्रीष्म ऋतु ( वैशाख और ज्येष्ठ मास) में वनस्पतिकायिक जीव क्रमशः अल्पाहारी होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में वे सर्वाल्पाहारी होते हैं ।
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[Ans.] Gautam ! Plant-bodied beings (vanaspati-kayik jivas) have maximum intake during four months of monsoon season (Pavas ritu and Varsha ritu), which according to Indian calendar are months of Ashadh, Shravan, Bhadrapad and Ashvin (the cause being excess of rain water during these months). After that their intake gradually reduces in the following seasons of autumn (Sharad ritu or Kartik and Margshirsh months), winter (Hemant ritu or Paush and Maagh months) and spring (Vasant ritu or Phalgun and Chaitra months). In the summer season (Grishm ritu or Vaishaakh and Jyeshth months) their intake is minimum.
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२. [ प्र. ] जइ णं भंते ! गिम्हासु वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति, कम्हा णं भंते! गिम्हासु
बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया पुष्फिया फलिया हरितगरेरिज्जमाणा सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा
उवसोभेमाणा चिट्टेति ?
भगवती सूत्र ( २ )
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Bhagavati Sutra (2)
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