________________
555556 46 46 46 46 46 4E LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LELELELELELELELELELELELELELELE
卐
卐
F
३८. एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासया ।
सेवं भंते! सेवं भंते । त्ति० ।
F
॥ सत्तम सए : बिइओ उद्देसओ समत्तो ॥
३७. भगवन् ! क्या नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ?
F
[उ.] जिस प्रकार ( औधिक) जीवों का कथन किया था, उसी प्रकार नैरयिकों को कथन करना चाहिए ।
38. In the same way the statement that from one angle they are
f eternal and from another angle they are non-eternal, should be repeated for all the twenty four places of suffering (Dandak).
F
37. [Q.] Bhante ! Are infernal beings eternal (shaashvat) or are they non-eternal ?
"Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and f so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
[Ans.] What has been said about living beings (in general) should be repeated for infernal beings.
३८. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डकों के विषय में कथन करना चाहिए कि वे जीव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं; यों कहकर गौतम स्वामी विचरने लगे।
Fi eternal.
Elaboration-From dravyarthik naya (existent material aspect) living
being (soul entity) is eternal. However as it undergoes a variety of 卐 transformations while moving around in various genuses in cycles of
卐
f rebirth, from paryayarthik naya (transformational aspect ) it is non- फ
विवेचन : सारांश - द्रव्यार्थिकनय की दृष्टि से जीव (जीवद्रव्य) शाश्वत है, किन्तु विभिन्न गतियों एवं योनियों में परिभ्रमण करने और विभिन्न पर्याय धारण करने के कारण पर्यायार्थिक-नय की दृष्टि से वह अशाश्वत है।
॥ सप्तम शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
फ्र
फ्र
END OF THE SECOND LESSON OF THE SEVENTH CHAPTER.
सप्तम शतक: द्वितीय उद्देशक
Jain Education International
(367)
For Private & Personal Use Only
Seventh Shatak: Second Lesson
2 55 5 5 55 59955 5 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5959595959595952
卐
www.jainelibrary.org