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११. एवं जाव चउरिदिया। १२. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा जीवा (सू. ९)। १३. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरइया (सू. १०)।
१०. [प्र. ] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव, मूलगुण प्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुण प्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी हैं ?
[उ. ] गौतम ! नैरयिक जीव, न तो मूलगुण प्रत्याख्यानी हैं और न उत्तरगुण प्रत्याख्यानी हैं, किन्तु ॐ अप्रत्याख्यानी हैं।
११. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। १२. पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों के विषय में (समुच्चय-औधिक) जीवों की तरह कहना चाहिए।
१३. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के सम्बन्ध में नैरयिक जीवों की तरह कथन म करना चाहिए। ये सब अप्रत्याख्यानी हैं। ___10. [Q.] Bhante ! Are infernal beings (nairayik jiva) mool-gunapratyakhyani (basic-virtue enhancing renouncers), uttar-guna pratyakhyani (auxiliary virtue enhancing renouncers), or apratyakhyani (non-renouncers)?
[Ans.) Gautam ! Infernal beings are neither basic-virtue enhancing $ renouncers nor auxiliary-virtue enhancing renouncers but nonrenouncers only.
11. Same should be repeated for living beings up to four sensed beings. ____12. What has been said about living beings (in general) should be repeated for five sensed animals and human beings.
13. What has been said about infernal beings should be repeated for Vanavyantar, Jyotishk and Vaimanik gods. They all are apratyakhyani (non-renouncers).
विवेचन : निष्कर्ष-नैरयिकों, पंचस्थावरों, तीन विकलेन्द्रिय जीवों, तथा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में मूलगुण प्रत्याख्यानी या उत्तरगुण प्रत्याख्यानी नहीं होते, वे सर्वथा अप्रत्याख्यानी होते हैं। तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों में तीनों ही विकल्प पाये जाते हैं। किन्तु तिर्यंचों में मात्र देशप्रत्याख्यानी ही हो सकते हैं।
Elaboration-Infernal, immobile (five kinds), and two to four sensed beings as well as divine beings like interstitial, stellar and celestial vehicular gods are all singularly non-renouncers; they are neither basic
भगवती सूत्र (२)
(358)
Bhagavati Sutra (2)
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