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))) )) ))) ))))))))))))) virtue enhancing renouncers nor auxiliary virtue enhancing renouncers. 4 The said three alternatives are applicable only to five sensed animals
and human beings. In animals there can only be partial renouncers म (desh-pratyakhyani).
१४. [प्र. ] एएसि णं भंते ! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं जाव अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? __[उ. ] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा।
१४. [प्र. ] भगवन् ! मूलगुण प्रत्याख्यानी, उत्तरगुण प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी, इन जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ॐ [उ. ] गौतम ! सबसे थोड़े जीव मूलगुण प्रत्याख्यानी हैं, (उनसे) उत्तरगुण प्रत्याख्यानी + असंख्येय गुणा हैं, और (उनसे) अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणा हैं।
14. Bhante ! Of these mool-guna-pratyakhyani (basic-virtue enhancing renouncer), uttar-guna pratyakhyani (auxiliary-virtue enhancing renouncer), and apratyakhyani (non-renouncer) living beings Gjivas), which are less (or more or equal or much more) than the other ?
[Ans.] Gautam ! Of the said living beings minimum (in number) are 4 basic-virtue enhancing renouncers, innumerable times more than these
are auxiliary-virtue enhancing renouncers, and infinite times more than these are non-renouncers.
१५. [प्र. ] एएसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं० पुच्छा।
[उ.] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी असंखेजगुणा, अपच्चक्खाणी असंखिज्जगुणा।
१६. [प्र. ] एएसि णं भंते ! मणुस्साणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं० पुच्छा।
[उ. ] गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखेज्जगुणा, ॐ अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा।
१५. [प्र. ] भगवन् ! इन मूलगुण प्रत्याख्यानी आदि (पूर्वोक्त) जीवों में पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक ॐ जीव कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
[उ. ] गौतम ! मूलगुण प्रत्याख्यानी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे उत्तरगुण ॐ प्रत्याख्यानी असंख्यगुणा हैं, और उनसे अप्रत्याख्यानी असंख्यगुणा हैं।
१६. [प्र. ] भगवन् ! इन मूलगुण प्रत्याख्यानी आदि जीवों में मनुष्य कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं?
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सप्तम शतक : द्वितीय उद्देशक
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Seventh Shatak : Second Lesson
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