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[Ans.] Gautam ! A shramanopasak by giving donation to an ascetic (etc.) helps him attain equanimous serenity (samadhi ). By helping him i (Shraman) attain equanimous serenity (samadhi) he (shramanopasak) himself attains the same samadhi.
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१०. [प्र.] समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा जाव पडिला भेमाणे किं चयति ? [उ. ] गोयमा ! जीवियं चयति, दुच्चयं चयति, दुक्करं करेति, दुल्लभं लभति, बोहिं बुज्झति तओ फ्र पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति ।
१०. [ प्र. ] भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन को यावत् प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक क्या त्याग (या संचय) करता (देता ) है ?
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[उ.] गौतम ! वह श्रमणोपासक जीवित ( जीवननिर्वाह के सहायक अन्नपानादि द्रव्य) का त्याग क करता - ( देता है, दुस्त्यज वस्तु का त्याग करता है, दुष्कर कार्य करता है, दुर्लभ वस्तु का लाभ लेता है, बोधि (सम्यग्दर्शन) का बोध प्राप्त ( अनुभव) करता है, उसके पश्चात् वह सिद्ध (मुक्त) होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है।
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10. [Q.] Bhante ! What does a shramanopasak give (or give up ) by donating to an ascetic (Shraman or Brahmin) conforming to the description in Agams (tatharupa) ?
[Ans.] Gautam ! That shramanopasak gives (and gives up ) the living (food, water and other life-sustaining things), he gives up things difficult to renounce, he performs difficult tasks, draws benefits difficult to attain, attains right perception (samyagdarshan) and then becomes 5 Siddha (perfected)... and so on up to... end all miseries. 卐
विवेचन : 'चयति' क्रिया पद के फलितार्थ के रूप में वृत्तिकार ने श्रमणोपासक को होने वाले ८ लाभों का निरूपण इस प्रकार किया है- (१) 'अन्न-पानी' प्राण तुल्य है, अतः अन्न-पानी देना - जीवनदान देना है, अतः वह जीवन का दान करता है। (२) जीवन का सबसे प्रिय दुस्त्याज्य अन्नादि द्रव्य का दुष्कर त्याग करता है । (३) कर्मों की दीर्घस्थिति को हस्व (अल्प) करता है। (४) दुष्ट कर्मद्रव्यों के संचय का, उसका त्याग करता है। (५) फिर अपूर्वकरण के द्वारा ग्रन्थिभेदरूप दुष्कर कार्य करता है। (६) इसके फलस्वरूप दुर्लभ - अनिवृत्तिकरणरूप 5 दुर्लभ वस्तु को उपलब्ध (चय) करता है। (७) तत्पश्चात् बोधि का लाभ (चय) = उपार्जन = अनुभव करता है। (८) तदनन्तर परम्परा से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है, यावत् समस्त कर्मों - दुःखों का अन्त (त्याग) कर देता है। ( वृत्ति, पत्रांक २८९)
सप्तम शतक : प्रथम उद्देशक
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Elaboration-Interpreting the verb root chayati, the commentator फ्र (Vritti) has listed eight benefits to a shramanopasak-(1) Food and water sustain life and as such giving these is like bestowing life; thus he bestows life. (2) The most difficult thing to give up is food and water; thus he gives up things difficult to renounce. (3) He shortens the
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Seventh Shatak: First Lesson
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