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451 karmic bondage) or sayogi Kevali (an omniscient with non-vitiating 4 karmas)]. A soul infested with passions and no aspiration for liberation
qualifies for Samparayiki kriya (activity inspired by association and passions and leading to karmic bondage). A shramanopasak (follower of Shraman) seated in upashraya (place of stay for ascetics) and
performing Samayik qualifies for Samparayik kriya because he is still i under the influence of passions. As long as a soul is not free of passions
(also non-abstainment and attachment) he qualifies only for Samparayik kriya, which is an outcome of passions. श्रमणोपासक का व्रत-प्रत्याख्यान ABSTAINMENT OF SHRAMANOPASAK ____७. [प्र. ] समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव तसपाणसमारंभे पच्चक्खाए भवति, पुढविसमारंभे अपच्चक्खाए भवति, से य पुढविं खणमाणे अनयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा, से णं भंते ! तं वयं अतिचरइ ? [उ.] णो इणटे समढे, नो खलु से तस्स अइवायाए आउट्टति।
७. [प्र. ] भगवन् ! जिस श्रमणोपासक ने पहले से ही त्रस-प्राणियों के समारम्भ का प्रत्याख्यान # कर लिया हो, किन्तु पृथ्वीकाय के समारम्भ का प्रत्याख्यान नहीं किया हो, उस श्रमणोपासक से पृथ्वी
खोदते हुए किसी त्रसजीव की हिंसा हो जाए, तो भगवन् ! क्या उसके व्रत (त्रसजीववध-प्रत्याख्यान) म का उल्लंघन होता है ? ॐ [उ. ] गौतम ! ऐसा नहीं है। क्योंकि वह श्रमणोपासक त्रसजीव के अतिपात (वध) के लिए प्रवृत्त नहीं होता।
7. [Q.] Bhante ! A shramanopasak who has already renounced violence towards mobile beings but has not renounced violence towards earth-bodied beings; if while digging earth he happens to harm some mobile being, Bhante, does this amount to transgression of his aforesaid vow? ___[Ans.] Gautam ! It is not so. This is because that shramanopasak does not intend to kill a mobile being.
८. [प्र. ] समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव वणस्सइसमारंभे पच्चक्खाए, से य पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा, से णं भंते ! तं वयं अतिचरति ?
[उ. ] णो इणढे समढे, नो खलु से तस्स अइवायाए आउट्टति।
८. [प्र. ] भगवन् ! जिस श्रमणोपासक ने पहले से ही वनस्पति के समारम्भ का प्रत्याख्यान किया ॥ के हो (किन्तु पृथ्वी के समारम्भ का प्रत्याख्यान न किया हो), पृथ्वी को खोदते हुए (उसके हाथ से) किसी के वृक्ष का मूल छिन्न (कट) हो जाए, तो भगवन् ! क्या उसका व्रत भंग होता है ?
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सप्तम शतक : प्रथम उद्देशक
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Seventh Shatak : First Lesson
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