________________
6555555555555555555555555555555555555
+ ६. [प्र. १] भगवन् ! श्रमण के उपाश्रय (धर्मस्थान) में बैठे हुए सामायिक किये हुए श्रमणोपासक (श्रावक) को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ?
[उ. ] गौतम ! उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती। [प्र. २ ] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम ! श्रमण के उपाश्रय में बैठे हुए सामायिक किये हुए श्रमणोपासक की आत्मा ॐ अधिकरणी (कषाय के साधन से युक्त) होती है। जिसकी आत्मा अधिकरण का निमित्त होती है, उसे ॐ ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती, किन्तु साम्परायिकी क्रिया लगती है। हे गौतम ! इसी कारण से (कहा
गया है कि उसे) साम्परायिकी क्रिया लगती है। 4 6. [Q. 1] Bhante ! Is a shramanopasak (follower of Shraman) seated in
upashraya (place of stay for ascetics) and performing Samayik (a formal Jain meditational practice) said to be performing Iryapathiki kriya (careful activity of an accomplished ascetic) or Samparayik kriya (passion inspired activity)?
(Ans.] Gautam ! He is said to be performing Samparayik kriya (passion inspired activity) and not Iryapathiki kriya (careful activity of 5 an accomplished ascetic).
[Q. 2] Bhante ! Why is it so ?
(Ans.] The soul of a shramanopasak (follower of Shraman) seated in upashraya (place of stay for ascetics) and performing Samayik is still an instrument of passions (adhikarani). A person who is an instrument of passions is not qualified for Iryapathiki kriya but only for Samparayik kriya. That is why Gautam ! He is said to be performing Samparayik kriya (passion inspired activity).
विवेचन : प्रवृत्ति निमित्त से होने वाली दो क्रियाएँ मुख्य हैं-ऐर्यापथिकी तथा सांपरायिकी। सांपरायिक क्रिया कर्म बंध का कारण है। वीतराग आत्मा एवं उपयोग युक्त संयत आत्मा को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है तथा कषाययुक्त एवं अनुपयुक्त आत्मा को सांपरायिकी क्रिया। जो श्रावक सामायिक करके श्रमणोपाश्रय में बैठा है. उसे साम्परायिक क्रिया लगने का कारण है, उक्त श्रावक में कषाय का सदभाव। जब तक आत्मा में कषाय (अप्रत्याख्यान या अविरति विद्यमान है) रहेगा, तब तक तन्निमित्तक साम्परायिक क्रिया लगेगी, क्योंकि साम्परायिक क्रिया कषाय के कारण लगती है।
Elaboration-Among voluntary activities two are main-Iryapathiki and Samparayiki. The Samparayiki kriya is the cause of karmic bondage. A detached soul and a restrained soul aspiring for liberation qualify for Iryapathiki kriya (careful movement of apramatt chhadmast sadhu (accomplished ascetic who is short of omniscience due to residual
EFFFFFFFFFFF5FFFF 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
| भगवती सूत्र (२)
(330)
Bhagavati Sutra (2)
步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org