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4i (synonyms of Tirthankar), endowed with perfect knowledge and
perception (Keval jnana-darshan) and born in this Lok that is wide at the base with a gradual taper ending with the shape of an upturned Mridang, know and see jivas (souls; living beings) as well as non-souls
(matter, space, time and other entities). Finally they become Siddha 4 (perfected), buddha (enlightened), mukta (liberated)... and so on up to... end all miseries.
विवेचन : लोक का विस्तार नीचे सात रज्जूपरिमाण है। ऊपर क्रमशः घटते हुए सात रज्जू की ऊँचाई पर ॐ एक रज्जू विस्तृत है। तत्पश्चात् उत्तरोत्तर क्रमशः बढ़ते हुए साढ़े दस रज्जू (नीचे से) की ऊँचाई पर पाँच रज्जू
और शिरोभाग में एक रज्जू विस्तार है। मूल (नीचे) से लेकर ऊपर तक की कुल ऊँचाई १४ रज्जू है।
लोक का संस्थान-लोक की आकृति को यथार्थरूप से समझाने के लिए लोक के तीन विभाग किये गये हैंॐ अधोलोक, तिर्यक्लोक और ऊर्ध्वलोक। अधोलोक का आकार उलटे सकोरे (शराव) जैसा है, तिर्यक्लोक का
आकार झालर थाली या पूर्ण चन्द्रमा जैसा है और ऊर्ध्वलोक का आकार ऊर्ध्व मृदंग जैसा है। (संलग्न रेखा चित्र देखें)
Elaboration—The spread of Lok is seven Rajjus (a very large linear measure) at the base. With a gradual taper it becomes one Rajju at the height of seven Rajjus. After that it gradually expands to five Rajjus at the height of ten and a half Rajjus. Then it again reduces gradually to one Raiju at the height of 14 Raijus. Thus the total height from base to top is 14 Rajjus.
Structure-In order to properly understand the structure, Lok has been divided into three parts-lower world (Adholok), transverse world (Tiryak lok) and upper world (Urdhvalok). The shape of Adholok is like an upturned cup, Tiryak Lok is like a disc or full moon and Urdhvalok is like an upturned Mridang. (see illustration) श्रमणोपासक की कितनी क्रिया ACTIVITIES OF SHRAMANOPASAK
६. [प्र. १ ] समणोवासगस्स णं भंते ! समाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कज्जइ ? संपराइया किरिया कज्जइ ?
[उ. ] गोयमा ! नो इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। [प्र. २ ] से केणटेणं जाव संपराइयाकिरिया कज्जइ ?
[उ. ] गोयमा ! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिकरणी भवति। आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स नो ईरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से तेणटेणं जाव संपराइया०।
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सप्तम शतक : प्रथम उद्देशक
(329)
Seventh Shatak: First Lesson
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