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[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[ उ. ] गौतम ! केवली भगवान पूर्व दिशा में मित (परिमित) को भी जानते हैं और अमित (अपरिमित) को भी जानते हैं; यावत् केवली का (ज्ञान और ) दर्शन निर्वृत्त, (परिपूर्ण और निरावरण) होता है। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है।
[Q. 2] Bhante ! Why is it so?
[Ans.] The omniscient knows the limited as well as the unlimited in the east... and so on up to... the (knowledge and) perception of the omniscient is unobstructed (complete and unveiled). Gautam ! That is why it is so?
उपसंहार की संग्रहणी गाथा CONCLUSIVE COLLATIVE VERSE
१५. जीवाण सुहं दुक्खं जीवे जीवति तहेव भविया य । एतदुक्खवेयण अत्तमायाय केवली ॥१ ॥
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० ।
॥ छट्ठे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो ॥ ॥ छटुं सतं समत्तं ॥
१५. जीवों का सुख - दुःख, जीव, जीव का प्राणधारण, भव्य, एकान्त दुःख - वेदना, आत्मा द्वारा पुद्गलों का ग्रहण और केवली, इन विषयों पर दसवें उद्देशक में विचार किया गया है।
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'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरने लगे ।
॥ छठा शतक : दशम उद्देशक समाप्त ॥
॥ छटा तक सम्पूर्ण ॥
15. Happiness and misery of living beings, living beings, life-force of living beings, the worthy, exclusive misery, intake of matter by soul and the omniscient, all these topics have been discussed in this tenth lesson.
"Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words.... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
END OF THE TENTH LESSON OF THE SIXTH CHAPTER END OF THE SIXTH CHAPTER.
छठा शतक : दशम उद्देशक
Sixth Shatak: Tenth Lesson
69595959595959 555 5 5 5 5 5 5 5955555555555959595
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