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ऊ स्थित) पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? या अनन्तरक्षेत्रावगाढ़ (आत्मा से दूर) पुद्गलों को
आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? अथवा परम्परक्षेत्रावगाढ़ (परक्षेत्र) पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ?
[उ. ] गौतम ! वे आत्म-शरीर-क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं, किन्तु न तो अनन्तर क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं और न ही परम्परक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं।
१३. जिस प्रकार नैरयिकों के लिए कहा, उसी प्रकार यावत् वैमानिक-पर्यन्त दण्डक (आलापक) कहना चाहिए।
12. (Q.) Bhante ! Infernal beings have intake of matter particles through the soul (self). Do they have this intake of matter particles through soul from the area occupied by their own body (atma kshetravagadh) ? Or from an area away from their own body (anantar
kshetravagadh) ? Or from an area far away from their bodies (parampar 4. kshetravagadh)?
[Ans.] Gautam ! They have this intake of matter particles through soul from the area occupied by their own body (atma kshetravagadh) but neither form an area away from their own body (anantar kshetravagadh) nor from an area far away from their bodies (parampar kshetravagadh).
13. As has been said about infernal beings so should be repeated for all Dandaks (places of suffering) up to Vaimanik. केवली अनिन्द्रिय होते हैं OMNISCIENT IS WITHOUT SENSE ORGANS
१४. [प्र. १ ] केवली णं भंते ! आयाणेहिं जाणति पासति ? [उ. ] गोयमा ! नो इणटे०। १४. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या केवली भगवान इन्द्रियों द्वारा जानते-देखते हैं ? [उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
14. [Q. 1] Bhante ! Do the omniscient know and see with the help of sense organs ?
[Ans.] Gautam ! That is not correct. [प्र. २ ] से केणद्वेणं ?
[उ. ] गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणति अमियं पि जाणति जाव निबुडे दंसणे 卐 केवलिस्स, से तेणटेणं।
भगवती सूत्र (२)
(322)
Bhagavati Sutra (2) 步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙步步步步步步步步日
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