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+ जीवों की सुख-दुःख धारणा CONCEPT OF HAPPINESS AND SORROW
११.[प्र. १ ] अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेति-"एवं खलु सब्बे पाणा सव्वे भूया + सवे जीवा सवे सत्ता एगंतदुक्खं वेदणं वेदेति से कहमेयं भंते ! एवं ?
[उ. ] गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया जाव मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदणं वेदेति, आहच्च सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतसायं वेदणं वेदेति, आहच्च असायं वेयणं वेदेति। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेयणं वेयंति, आहच्च सायमसायं।
११. [प्र. १ ] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तदुःखरूप वेदना को वेदते (अनुभव करते) हैं, तो भगवन् ! ऐसा कैसे हो सकता है?
[उ. ] गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ-कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तदुःख रूप वेदना वेदते हैं और कदाचित् साता (सुख) रूप वेदना भी वेदते हैं; कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तसाता (सुख) रूप वेदना वेदते हैं और कदाचित् असाता (दुःख) रूप वेदना
भी वेदते हैं; तथा कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व विमात्रा (विविध प्रकार) से वेदना वेदते हैं; ॐ (अर्थात्-) कदाचित् सातारूप और कदाचित् असातारूप (वेदना वेदते हैं।)
11. [Q. 1] Bhante ! People of other faiths (anyatirthik) or heretics say (akhyanti)... and so on up to... propagate (prarupayanti) that-all praan (two to four sensed beings; beings), bhoot (plant bodied beings; * organisms), jiva (five sensed beings; souls), and sattva (immobile beings; entities) exclusively suffer pain. Bhante ! How is it so?
[Ans.] Gautam ! What the people of other faiths (anyatirthik) or 4 heretics say (akhyanti)... and so on up to... propagate (prarupayanti) is wrong. I say (akhyanti)... and so on up to... propagate (prarupayanti) that—some praan (two to four sensed beings; beings), bhoot (plant bodied beings; organisms), jiva (five sensed beings; souls), and sattva (immobile beings; entities) exclusively suffer pain (asaata) but sometimes experience happiness (saata). Some praan, bhoot, jiva, and sattva exclusively experience happiness but sometimes experience pain. And some praan, bhoot, jiva, and sattva have diverse experiences (they
sometimes suffer happiness and sometimes pain). ॐ [प्र. २ ] से केणटेणं० ?
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भगवती सूत्र (२)
(320)
Bhagavati Sutra (2)
步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步园
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