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a single space-point row. After that it has food intake, it transforms that food and it takes a body.
(3) What has been stated for the area east of Meru mountain should be repeated for south, west, north, above and below of Meru mountain.
६. जहा पुढविकाइया तहा एगिदियाणं सव्वेसिं एक्केक्कस्स छ आलावगा भाणियब्वा।
६. जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में कहा है, उसी प्रकार से सभी एकेन्द्रिय जीवों के विषय में कहना चाहिए। एक-एक के छह-छह आलापक कहने चाहिए।
6. What has been said about earth-bodied beings should be repeated for all one-sensed beings. Six statements each. ____७. [प्र.] जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्याएणं समोहइ, समोहणित्ता जे भविए अंसखेज्जेसु बेइंदियावाससयसहस्सेसु अनतरंसि बेइंदियावासंसि बेइंदियत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते तत्थगते चेव० !
[उ. ] जहा नेरइया। एवं जाव अणुत्तरोववाइया।
७. [प्र. ] भगवन् ! जो जीव, मारणान्तिक समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर द्वीन्द्रिय जीवों के असंख्येय लाख आवासों में से किसी एक आवास में द्वीन्द्रिय रूप में उत्पन्न होने वाला है; भगवन् ! क्या वह जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, उस आहार को परिणमाता है, और शरीर बाँधता है?
[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों के लिए कहा गया, उसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर अनुत्तरौपपातिक देवों तक सब जीवों के लिए कथन करना चाहिए।
7. [Q.] When a soul (jiva) having undergone maranantik samudghat is destined to be born as a two-sensed being in any one of the innumerable million abodes; on reaching there does this soul have food intake, does it transform that food and does it take a body ?
(Ans.) What has been said about infernal beings should be repeated for all beings starting from two-sensed beings... and so on up to... Anuttaropapatik gods.
८. [प्र.] जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए एवं पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालएसु महाविमाणेसु अनयरंसि अनुत्तरविमाणंसि अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते तत्थगए चेव !
[उ.] तं चेव जाव आहारेज्ज वा, परिणामेज वा, सरीरं वा बंधेजा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥छटे सए : छट्ठो उद्देसो समत्तो ॥
छठा शतक: छठा उद्देशक
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Sixth Shatak: Sixth Lesson
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