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८. [प्र. ] हे भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर सबसे महान् महाविमानरूप पंच अनुत्तरविमानों में से किसी एक अनुत्तर विमान में अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है और शरीर बाँधता है?
[उ. ] गौतम ! पहले कहा गया है, उसी प्रकार कहना चाहिए यावत् आहार करता है, उसे परिणमाता है और शरीर बाँधता है।
_ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् । यह इसी प्रकार है', ऐसा कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरण करते हैं।
8. [Q.] When a soul (jiva) having undergone maranantik samudghat is destined to be born as an Anuttaropapatik god in any one of the five great celestial vehicles called Anuttaropapatik Vimaans; on reaching there does this soul have food intake, does it transform that food and does it take a body? ।
(Ans.] Gautam ! It is as stated before... and so on up to... it has food intake, it transforms that food and it takes a body. ___“Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so. “With these words.. and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : निष्कर्ष-एक जीवन में मारणान्तिक समुद्घात (मरण के समय होने वाली आत्मा की उग्र क्रिया) का प्रयोग दो बार होता है-(१) कुछ जीव मारणांतिक समुद्घात का प्रयोग करके अपने उत्पत्तिस्थान पर जन्म ले लेते हैं। जो जीव मारणान्तिक समुद्घात करके नरकावासादि में अपने आगामी उत्पत्तिस्थान पर जाते हैं, उस काल में उनमें से कोई एक जीव, जो समुद्घात-काल में ही मरण प्राप्त हो जाता है, वह वहाँ मारणान्तिक समुद्घात करके पुनः उत्पत्तिस्थान पर आता है; फिर आहारयोग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है, तत्पश्चात् ग्रहण किये हुए उन पुद्गलों को पचाकर उनका खलरूप और रसरूप विभाग करता है। फिर पुद्गलों से शरीर की रचना करता है।
द्वीन्द्रिय आदि जीवों के आवासस्थान लोक के एक भाग में हैं। एकेन्द्रिय के आवासस्थान सम्पूर्ण लोक में है। इसलिए वे जीव लोकान्त तक उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक जीव का आकाश के असंख्य प्रदेशों में अवगाहन होता है। इसलिए वह एक प्रदेशात्मक आकाश श्रेणी को छोड़कर अनेक प्रदेशात्मक-असंख्य प्रदेशात्मक आकाश श्रेणी में उत्पन्न होता है। (वत्ति, पत्रांक २७३-२७४)
॥छठा शतक : छठा उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration Conclusion-In one rebirth a soul may undergo maranantik samudghat (bursting forth of some soul-space-points before the moment of death) twice. After maranantik samudghat some souls (jiva) take rebirth at their destined place including infernal abodes. Out | भगवती सूत्र (२)
(278)
Bhagavati Sutra (2)
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