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४. [प्र.] जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए चउसट्टीए असुरकुमारावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारत्ताए उववज्जित्तए।
[उ. ] जहा नेरइया तहा भाणियव्या जाव थणियकुमारा।
४. [प्र. ] भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर असुरकुमारों के चौंसठ लाख आवासों में से किसी एक आवास में उत्पन्न होने के योग्य है; क्या वह जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है ? उस आहार को परिणमाता है और शरीर बाँधता है ?
[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा, उसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में, यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए।
4. [Q.] Bhante ! When a soul (jiva) having undergone maranantik samudghat is destined to be born as a divine being in any one of the 6.4 million abodes of Asur Kumar gods; on reaching there does this soul ve food intake, does it transform that food and does it take a body?
(Ans.] Gautam ! What has been stated about infernal beings should be repeated for Asur Kumar gods... and so on up to... Stanit Kumar gods. ___५. [प्र. १ ] जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए असंखेजेसु पुढविकाइयावाससयसहस्सेसु अनयरंसि पुढविकाइयावासंसि पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं केवइयं गच्छेज्जा, केवइयं पाउणेज्जा ?
[उ. ] गोयमा ! लोयंतं गच्छेज्जा, लोयंत पाउणिज्जा।
५. [प्र. १] भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत हुआ है, और समवहत होकर असंख्येय लाख पृथ्वीकाायिक आवासों में से किसी एक पृथ्वीकायिक आवास में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन् ! वह जीव मंदर (मेरु) पर्वत से पूर्व में कितनी दूर जाता है ? और कितनी दूरी को प्राप्त करता है?
[उ.] हे गौतम ! वह लोकान्त तक जाता है और लोकान्त को प्राप्त करता है।
5. [Q. 1] Bhante ! When a soul (jiva) having undergone maranantik samudghat is destined to be born as a divine being in any one of the innumerable million abodes of earth-bodied beings, Bhante ! What distance to the east of Mandar (Meru) mountain does it cover and how far does it reach?
(Ans.] Gautam ! It goes up to the edge of the universe (Lokaant) and reaches the edge of the universe.
[प्र. २ ] से णं भंते ! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा ?
छठा शतक : छटा उद्देशक
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Sixth Shatak : Sixth Lesson
1995
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