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555555555555555555555555555555555558 卐 मारणान्तिक समुद्घात MARANANTIK SAMUDGHAT
३. [प्र. ] जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्याएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए म पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! # तत्थगए चेव आहारेज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा ?
[उ. ] गोयमा ! अत्यंगइए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा, फ़ अत्थेगइए तओ पडिनियत्तित्ता, इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्याएणं समोहणइ,
समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अनयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए तओ पच्छा आहारेज्ज वा परिणामेज वा सरीरं वा बंधेज्जा। एवं जाव अहेसत्तमा
पुढवी।
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३. [प्र. ] भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत हुआ (समुद्घात किया) है और 卐 समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक
रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है? आहार को परिणमाता फ़ है? और शरीर बाँधता है ?
[उ. ] गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है या शरीर 卐 बाँधता है; और कोई जीव वहाँ जाकर वापस लौटता है, वापस लौटकर यहाँ आता है। यहाँ आकर वह
फिर दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात द्वारा समवहत होता है। समवहत होकर इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होता है। इसके पश्चात आहार ग्रहण करता है, परिणमाता है और शरीर बाँधता है। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी (तमस्तमः प्रभा) पृथ्वी तक कहना चाहिए।
3. (Q.) Bhante ! When a soul (jiva) having undergone maranantik samudghat (bursting forth of some soul-space-points before the moment of death) is destined to be born as an infernal being in any one of the three million hell-abodes; on reaching there does this soul have food intake, does it transform that food and does it take a body ?
[Ans.] Gautam ! On reaching there, some soul (jiva) has food intake, it transforms that food and it takes a body, while some other soul goes there, returns and once again undergoes maranantik samudghat. After this it is born as an infernal being in any one of the three milli abodes. After that it has food intake, it transforms that food and it takes a body. The same should be repeated for all hells up to Adhah-saptami (Tamstamah-prabha).
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| भगवती सूत्र (२)
(274)
Bhagavati Sutra (2)
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