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________________ 5 ) 5555555555555555555555555555 卐55555555555555555555555555555555555555555555558 १५. [प्र. ] भगवन् ! क्या तमस्काय पृथ्वी का परिणाम है, जल का परिणाम है, जीव का परिणाम है अथवा पुद्गल का परिणाम है? [उ. ] गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणाम नहीं है, किन्तु जल का परिणाम है, जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है। 15. (Q.) Bhante ! Is Tamaskaaya a derivative of earth, a derivative of water, a derivative of jiva (life force or soul) or a derivative of matter ? (Ans.) Gautam ! Tamaskaaya is not a derivative of earth, but a derivative of water, a derivative of jiva (life force or soul) as well as a derivative of matter. १६. [प्र. ] तमुक्काए णं भंते ! सव्वे पाणा भूता जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववत्रपुवा ? [उ. ] हंता, गोयमा ! असई, अदुवा अणंतखुत्तो, णो चेव णं बादरपुढविकाइयत्ताए वा, बादरअगणि काइयत्ताए वा। १६. [प्र. ] भगवन् ! क्या तमस्काय में सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व-पृथ्वीकायिक रूप में ॐ यावत् त्रसकायिक रूप में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? [उ.] हाँ, गौतम ! (वे सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, तमस्काय में) अनेक बार अथवा अनन्त ॐ बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं; किन्तु बादर पृथ्वीकायिक रूप में या बादर अग्निकायिक रूप में उत्पन्न नहीं m听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFs 16. (Q.) Bhante ! Have all beings (praan), organisms (bhoot), souls jiva), and entities (sattva) been born in Tamaskaaya earlier in the form of earth-bodied... and so on up to... mobile beings many times or infinite times? (Ans.] Yes, Gautam ! All these have been born many times or infinite times but never in the form of gross earth-bodies or gross fire-bodies. विवेचन : तमस्काय का अर्थ-यह अन्धकारमय सघन पुद्गलों का समूह है। तमस्काय उदकरजःस्कन्धरूप है।" क्योंकि जल अप्रकाशक होता है और तमस्काय भी अप्रकाशक है। दोनों (अप्काय और तमस्काय) का समान स्वभाव होने से तमस्काय अप्काय का ही परिणाम है। तमस्काय एकप्रदेश श्रेणीरूप है, इसका अर्थ है कि वह समभित्ति वाली अर्थात नीचे से लेकर ऊपर तक एक समान भींत रूप श्रेणी है। एक आकाश-प्रदेश की श्रेणीरूप नहीं। तमस्काय का संस्थान मिट्टी के सकोरे के (मल का) आकार-सा और ऊपर मुर्गे के गै के पिंजरे के जैसा है। वह दो प्रकार का है-संख्येय योजन विस्तृत और असंख्येय योजन विस्तृत। पहला जलान्त (जल के ऊपर का ॐ स्तर) से प्रारम्भ होकर संख्येय योजन तक फैला हुआ है, दूसरा असंख्येय योजन तक विस्तृत और असंख्येय ॐ 卐 द्वीपों को घेरे हुए है। तमस्काय इतना विस्तृत है कि कोई देव ६ महीने तक अपनी उत्कृष्ट शीघ्र दिव्यगति से चले ॥ भगवती सूत्र (२) (258) Bhagavati Sutra (2) 5555555555步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙%%%%%%回 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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