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तो भी वह संख्ये योजन विस्तृत तमस्काय तक पहुँचता है, असंख्येय योजन तमस्काय तक पहुँचना बाकी रह जाता है।
तमस्काय में घर, ग्राम, नगर आदि नहीं हैं, किन्त वहाँ बड़े-बड़े मेघ उठते हैं, उमड़ते हैं, गर्जते हैं, बरसते हैं। बिजली भी चमकती है। देव, असुर या नागकुमार ये सब कार्य करते हैं। विग्रहगतिसमापन्न बादर पृथ्वी या अग्नि को छोड़कर तमस्काय में न बादर पृथ्वीकाय है, न अग्निकाय । तमस्काय में चन्द्र-सूर्यादि नहीं हैं, किन्तु उसके आसपास में हैं, उनकी प्रभा तमस्काय में पड़ती भी है, किन्तु तमस्काय के परिणाम से परिणत हो जाने के कारण नहीं जैसी है । तमस्काय काला, भयंकर काला और रोमहर्षक तथा त्रासजनक है। देवता भी उसे देखकर घबरा जाते हैं। यदि कोई देव साहस करके उसमें घुस भी जाये तो भी वह भय के मारे कायगति से अत्यन्त तेजी से और मनोगति से अतिशीघ्र बाहर निकल जाता है। तमस्काय पानी, जीव और पुद्गलों का परिणाम है, जलरूप होने के कारण वहाँ बादर वायु, वनस्पति और त्रस जीव उत्पन्न होते हैं । इनके अतिरिक्त अन्य जीवों का स्वस्थान न होने से उनकी उत्पत्ति तमस्काय में सम्भव नहीं है।
कृष्ण विवर के साथ समानता - आधुनिक वैज्ञानिकों ने बरमूदा - त्रिकोण (त्रिनिडाड समुद्र तट) के रहस्यमय क्षेत्र में यात्रा करते हुए जल का एक अत्यन्त सघन काला भयानक पर्वताकार अंधकार देखा। उसके निकट जाते ही राडार आदि ने काम करना बन्द कर दिया। जहाज की सब बत्तियाँ बुझ गईं। इंजन का स्टीम प्रेशर भी खत्म हो गया। वैज्ञानिकों ने उस यात्रा का पूरा विवरण दिया है। जो साप्ताहिक हिन्दुस्तान ९ सितम्बर १९७९ में 'बरमूदा - त्रिकोणः नये पुराने कितने कोण' नाम से छपा है। वैज्ञानिकों ने इसे कृष्ण विवर नाम दिया है। तमस्काय के उक्त वर्णन से कृष्ण विवर का वर्णन बहुत ही आश्चर्यजनक समानता रखता है। (विशेष द्रष्टव्य : भगवई भाष्य, भाग २, पृष्ठ २७७)
Elaboration-Tamaskaaya means a dense cluster of dark matter particles (pudgala). It is formed of water-bodies because water-bodies do not emit light and Tamaskaaya too does not. As they have same properties it can be inferred that Tamaskaaya is a derivative of waterbodies. Tamaskaaya is a matrix of one space-point depth. It has a uniform wall like structure from base to top and not a row of single space-points. At the base it is of the shape of the base of a mallak (earthen pot of the shape of a conical tumbler) and at the top it is like cage of a cock (square shaped). Tamaskaaya is of two kinds-with limited expanse and with unlimited expanse. The first starts at water surface and has a spread of countable thousand Yojans. The second has a spread of innumerable thousand Yojans and envelopes innumerable continents. The expanse of Tamaskaaya is so great that a god travelling with his maximum divine speed can cover only the Tamaskaaya with countable Yojan expanse and not that with innumerable Yojan expanse.
There are no houses, villages or cities in Tamaskaaya but gigantic clouds are formed there producing thunder and rain. There is lightening also. These acts are performed by gods including Dev, Asurs and Naag छठा शतक : पंचम उद्देशक
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फ़फ़फ़ फ्र
Sixth Shatak: Fifth Lesson
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