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४. [.] तमुक्काए णं भंते केवइयं विक्खंभेणं ? केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ?
[उ.] गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - संखेज्जवित्थडे यं असंखेज्जवित्थडे य । तत्थ णं जे से संखेज्जवित्थडे से णं संखेज्जाई जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । तत्थ णं जे से असंखिज्जवित्थडे से असंक्खेज्जाई जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।
४. [ प्र.] भगवन् ! तमस्काय का विष्कम्भ - विस्तार और परिक्षेप-घेरा कितना है ?
[उ. ] गौतम ! तमस्काय दो प्रकार की है - एक तो संख्येय विस्तृत और दूसरी असंखेय विस्तृत । इनमें से जो संख्येय विस्तृत है, उसका विस्तार संख्येय हजार योजन है और घेरा असंख्येय हजार योजन है। जो तमस्काय असंख्येय विस्तृत है, उसका विष्कम्भ, असंख्येय हजार योजन और परिक्षेप भी असंख्येय हजार योजन है।
4. [Q.] Bhante ! What is the vishkambh (spread or area ) and parikshep (circumference) of Tamaskaaya ?
[Ans.] Gautam ! Tamaskaaya is of two kinds — with limited expanse and with unlimited expanse. One with limited expanse has a spread of countable thousand Yojans and a circumference of innumerable thousand Yojans. One with unlimited expanse has a spread of innumerable thousand Yojans and a circumference of innumerable thousand Yojans.
५. [.] मुक्काणं भंते ! केमहालए पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्व दीव-समुद्दाणं सभंतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते । देवे णं महिड्ढीए जाव 'इणामेव इणामेव' त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छिज्जा से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव देवगईए बीईवयमाणे वीईवयमाणे जाव एकाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं छम्मासे वीईवएज्जा, अत्थेगइयं 5 तमुक्कायं बीईवएज्जा, अत्थेगइयं तमुक्कायं नो वीईवएज्जा । एमहालए णं गोयमा ! तमुक्काए पन्नत्ते । ५. [ प्र. ] भगवन् ! तमस्काय कितनी बड़ी है ?
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देव
देव यावत् एक दिन, दो दिन, तीन दिन चले, यावत् उत्कृष्ट छह महीने तक चले तब जाकर कुछ
छठा शतक : पंचम उद्देशक
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[उ.] गौतम ! समस्त द्वीप - समुद्रों के बीचोंबीच यह जम्बूद्वीप है । यावत् यह एक लाख योजन का 5 लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। कोई महाऋद्धि यावत् महानुभाव वाला देव'यह चला, यह चला'; ऐसा करके तीन चुटकी बजाये, उतने समय में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार 5 परिक्रमा करके शीघ्र वापस आ जाये, इस प्रकार की
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और त्वरायुक्त उत्कृष्ट
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Sixth Shatak: Fifth Lesson
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गति से चलता हुआ फ
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