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| चित्र परिचय-७
Illustration No. 7
तमस्काय कहाँ से कहाँ तक-मध्यलोक स्थित जम्बूद्वीप के बाहर असंख्य द्वीप समुद्रों के बाद अरुणवर समुद्र आता है। इस समुद्र में ४२,००० योजन भीतर जाने पर जल के सघन पुद्गलों का एक अंधकार मय समूह सीधा ऊपर की ओर
उठता है। यह अंधकाराच्छन्न जल जातीय पुद्गलों का समूह है। इसे तमस्काय (अंधकार समूह) कहते हैं। यह सीधी 卐 दीवार की आकृति में ऊपर उठती हुई १७२१ योजन ऊपर जाने के बाद तिरछी विस्तार लेती हुई ऊपर की ओर जाती
है। १. सौधर्म, २. ईशान इन दोनों देवलोकों को घेरती हुई ऊपर, ३. सनत्कुमार, ४. माहेन्द्र देवलोक से भी ऊपर जाकर पाँचवें देवलोक के रिष्ट विमान के प्रस्तट तक पहुँच जाती है। यह इतना सघन अंधकार समूह होता है कि देवता भी इसे पार करने में भयभीत होते हैं।
__-शतक ६, उ. ५, सूत्र १ से १५ ___अष्ट कृष्णराजि-पाँचवें देवलोक के तृतीय प्रस्तट के नीचे समचौरस आकार वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं। ये तमस्काय जैसी ही भयानक है। परन्तु यह बादर अप्कायिक जीव नहीं, किन्तु पृथ्वीकायिक जीवों का पुद्गल पिण्ड है। इनको पार करने में अत्यन्त शीघ्र गति वाले देव को भी १५ दिन तक लग सकते हैं। इनके बीच कोनों पर आठ लोकान्तिक देवों के (काले अंधकार की श्रेणी) आठ विमान हैं। तथा नौवां रिष्टाभ विमान मध्य में स्थित है। कृष्णराजिपूर्व-पश्चिम षट्कोण, उत्तर-दक्षिण त्रिकोण तथा मध्य कोनों में चतुष्कोण आकृति में है।
-शतक ६, उ. ५, सूत्र १७-१८
TAMASKAAYA In the middle world outside the Jambudveep continent after crossing innumerable pairs of island-seas one reaches Arunavar sea. Crossing 42 thousand Yojans in that sea comes a point on the water surface from where Tamaskaaya rises into space as a matrix (shreni) of single space-point dimension (depth). Going perpendicular for 1721 Yojans it turns and extends to envelope four divine dimensions (heavens), namely Saudharma, Ishan, Sanatkumar and Maahendra kalps, and goes up to Risht Vimaan of the fifth Brahmalok kalp.
This conglamorative entity of water-derived darkness is so dense that even gods are afraid to cross it.
--Shatak-6, lesson-5, Sutra-1 . 15 Eight Krishna-rajis-Below the third level of the fifth heaven there are eight square shaped krishna-rajis. They are as fierce as Tamaskaaya. But they are earthderived and not water-derived. To cross these even the fastest gods may take fifteen days. Eight celestial vehicles of eight Lokantik gods are located between the corners of these Rajis. A ninth celestial vehicle called Rishtabh is at the center. The outer krishna-rajis of east and west are hexagonal and those of north and south are 41 triangular. All the inner krishna-rajis are square.
-Shatak-6, lesson-5, Sutra-17. 18
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