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****************************தமி**ழி
२४. [ प्र.] भगवन् ! क्या जीव, प्रत्याख्यान से निबद्ध आयुष्य वाले हैं ? अप्रत्याख्यान से निबद्ध आयुष्य वाले हैं अथवा प्रत्याख्याना - प्रत्याख्यान से निबद्ध आयुष्य वाले हैं ? ( अर्थात्-क्या जीवों का आयुष्य प्रत्याख्यान से बँधता है यावत् ....)
[ उ. ] गौतम ! जीव और वैमानिक देव प्रत्याख्यान से निबद्ध आयुष्य वाले हैं, अप्रत्याख्यान से और प्रत्याख्याना - प्रत्याख्यान से निबद्ध आयुष्य वाले भी हैं। शेष सभी जीव अप्रत्याख्यान से निबद्ध आयुष्य वाले हैं।
24. [Q.] Bhante ! Are beings with a life-span determined by pratyakhyan, are they with a life-span determined by apratyakhyan, or are they with a life-span determined by pratyakhyan-apratyakhyan?
[Ans.] Gautam ! Jiva (in general) and Vaimanik gods are with a lifespan determined by pratyakhyan, they are with a life-span determined by apratyakhyan as well as by pratyakhyan-apratyakhyan. All other beings are with a life-span determined by apratyakhyan.
विवेचन : प्रत्याख्यानी - सावद्य प्रवृत्ति का त्यागी । अप्रत्याख्यानी-अविरत, जिसने कोई भी व्रत स्वीकार नहीं किया हो ।
प्रत्याख्यानाऽप्रत्याख्यानी- देशविरत । व्रतधारी श्रावक । चारित्रमोह कर्म के क्षयोपशम से प्रत्याख्यान की पात्रता आती है।
(१) जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं, प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी भी हैं । (२) नैरयिकों से लेकर चतुरिन्द्रिय जीव तक तथा भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव अप्रत्याख्यानी होते हैं। तिर्यंच पंचेन्द्रिय अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्याना - प्रत्याख्यानी दोनों होते हैं, तथा मनुष्य तीनों ही होते हैं। (३) संज्ञी पंचेन्द्रिय के सिवाय कोई भी जीव प्रत्याख्यानादि को नहीं जानते हैं। (४) समुच्चय जीव और मनुष्य प्रत्याख्यानादि तीनों ही करते हैं, तिर्यंच पंचेन्द्रिय अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्याना - प्रत्याख्यान करते हैं और शेष २२ दण्डक के जीव प्रत्याख्यान नहीं करते। (५) समुच्चय जीव और वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाले जीव प्रत्याख्यान आदि तीनों भंगों में आयुष्य बाँधते हैं, शेष २३ दण्डक के जीव अप्रत्याख्यान में आयुष्य बाँधते हैं।
प्रत्याख्यानकरण का आशय - प्रत्याख्यान तभी होता है, जबकि वह किया जाता है। सच्चे अर्थों में प्रत्याख्यान वही करता है, जो प्रत्याख्यान एवं प्रत्याख्यान - अप्रत्याख्यान को जानता हो ।
प्रत्याख्यानादि निर्वर्तित आयुष्यबन्ध का आशय - प्रत्याख्यान आदि से आयुष्य बाँधे हुए को प्रत्याख्यानादिनिर्वर्तित आयुष्यबन्ध कहते हैं। प्रत्याख्यान वाले जीवों की उत्पत्ति प्रायः वैमानिकों में, एवं अप्रत्याख्यानी अविरत जीवों की उत्पत्ति प्रायः नैरयिक आदि में होती है। (वृत्ति, पत्रांक २६७ )
Elaboration-Pratyakhyani means one who has renounced all sinful activities. Apratyakhyani means one who is attached and who has not taken any vow of abstainment. Pratyakhyani-apratyakhyani means one with partial detachment or a shraavak who has taken vows. The capacity of renunciation develops with the destruction-cum-pacification of Chaaritramoha karma (conduct-disturbing karma).
छठा शतक : चतुर्थ उद्देशक
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Sixth Shatak: Fourth Lesson
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