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म २२. [प्र.] जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणं जाणंति, अपच्चक्खाणं जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति ?
[उ. ] गोयमा ! जे पंचेंदिया ते तिण्णि वि जाणंति, अवसेसा पच्चक्खाणं न जाणंति।
२२. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान को जानते हैं, अप्रत्याख्यान को जानते हैं और प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यान को जानते हैं ?
[उ. ] गौतम ! जो पंचेंद्रिय जीव हैं, वे तीनों को जानते हैं। शेष जीव प्रत्याख्यान आदि तीनों को नहीं जानते।
22. (Q.) Bhante ! Do living beings (jivas) know pratyakhyan (renunciation of sinful activities), do they know apratyakhyan (nonrenunciation of sinful activities) and do they know pratyakhyanapratyakhyan (renunciation - non-renunciation of sinful activities)?
[Ans.] Gautam ! The five-sensed beings know all the three. The rest do not know renunciation (any of the three).
२३. [प्र. ] जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणं कुब्वंति अपच्चक्खाणं कुव्वंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं कुव्वंति ?
[उ. ] जहा ओहिया तहा कुबणा।
२३. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान करते हैं, अप्रत्याख्यान करते हैं, प्रत्याख्यानप्रत्याख्यान करते हैं ?
[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार औधिक दण्डक (समुच्चय में) कहा है, उसी प्रकार प्रत्याख्यान करने के 卐 विषय में कहना चाहिए।
23. (Q.) Bhante ! Do living beings (jivas) practice pratyakhyan (renunciation of sinful activities), do they practice apratyakhyan (nonrenunciation of sinful activities) and do they practice pratyakhyanapratyakhyan (renunciation - non-renunciation of sinful activities)?
[Ans.] Gautam ! What has been stated about beings in general (aphorism 21) should be repeated for practice of pratyakhyan. प्रत्याख्यान निबद्ध आयु LIFE SPAN DETERMINED BY PRATYAKHYAN ___ २४. [प्र.] जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणनिव्वत्तियाउया, अपच्चक्खाणनिव्वत्तियाउया, पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणनिव्वत्तियाउया ?
[उ.] गोयमा ! जीवा य वेमाणिया य पच्चक्खाणणिवत्तियाउया तिण्णि वि। अवसेसा अपच्चक्खाणनिव्वत्तियाउया।
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| भगवती सूत्र (२)
(248)
Bhagavati Sutra (2)
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