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जीव और प्रत्याख्यान BEING AND RENUNCIATION म २१. [प्र. १] जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी ? म [उ. ] गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चखाणी वि, पच्चक्खाणाऽपच्चक्खाणी वि।
२१. [प्र. १] भगवन् ! क्या जीव (१) प्रत्याख्यानी हैं (पाप का त्याग करने वाले), 卐 (२) अप्रत्याख्यानी हैं, या (३) प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानी हैं ? 4 [उ. ] गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानी भी हैं।
21. [Q. 1] Bhante ! Are living beings (jivas) (1) with pratyakhyan + (renunciation of sinful activities), (2) with apratyakhyan (non
renunciation of sinful activities) or (3) with pratyakhyan-apratyakhyan (renunciation - non-renunciation of sinful activities)?
[Ans.] Gautam ! Living beings are with pratyakhyan (renunciation of sinful activities), with apratyakhyan (non-renunciation of sinful
activities) as well as with pratyakhyan-apratyakhyan (renunciation - f non-renunciation of sinful activities).
[प्र. २ ] सव्वजीवाणं एवं पुच्छा। __ [उ.] गोयमा ! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चउरिदिया, सेसा दो पडिसेहेयव्या। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णो पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणे वि। मणुस्सा तिण्णि
वि। सेसा जहा नेरइया। 2 [प्र. २.] इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में यही प्रश्न है, (कि वे प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी
हैं या प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानी हैं ?) # [उ. ] गौतम ! नैरयिक जीव अप्रत्याख्यानी हैं, यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक अप्रत्याख्यानी हैं, । अतः इन जीवों में शेष दो भंगों का निषेध करना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्रत्याख्यानी नहीं हैं, किन्तु
अप्रत्याख्यानी हैं और प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानी भी हैं। मनुष्य तीनों भंग के स्वामी हैं। शेष जीवों का कथन नैरयिकों की तरह करना चाहिए। __ [Q.2] Is it universally true for all jivas (living beings; souls) ?
(Ans.] Gautam ! Infernal beings are apratyakhyani (without renunciation of sinful activities)... and so on up to... four-sensed beings are apratyakhyani, therefore the other two aforesaid alternatives are not applicable to them. Five-sensed animals are not pratyakhyani (with renunciation) but apratyakhyani (without-renunciation) as well as pratyakhyani-apratyakhyani (with and without renunciation). To humans all the three said alternatives are applicable. All the remaining i beings follow the pattern of infernal beings.
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नागगगगग
Sixth Shatak : Fourth Lesson
छठा शतक : चतुर्थ उद्देशक
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