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१२. वेद बार VEDA DVAR (DOOR OF GENDER) - १७. [१] सवेयगा य जहा सकसाई। इथिवेयग-पुरिसवेयग-नपुंसगवेयगेसु जीवादिओ तियभंगो, नवरं नपुंसगवेदे एगिदिएसु अभंगयं।
[ २ ] अवेयगा जहा अकसाई।
१७. [१] सवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान है। स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवों में जीवादि तीन भंग पाये जाते हैं। विशेष यह है कि नपुंसकवेद में जो एकेन्द्रिय होते हैं, उनमें अभंगक (अधिक भंग नहीं, किन्तु एक भंग) है।
[२] जैसे अकषायी जीवों के विषय में कथन किया, वैसे ही अवेदक (वेदरहित) जीवों के विषय में कहना चाहिए।
17. [1] Jivas with vedas (genderic beings) should be described like sakashaayi jivas (beings with passions). In feminine, masculine and neuter beings there are three alternatives of jiva etc. Difference is that in the one-sensed neuter beings there is only one state (abhang).
[2] What has been stated about akashaayi jivas (beings without passions) should be repeated for aveda jivas (non-genderic beings).
विवेचन : १२. वेद द्वार-सवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान है। सवेदक जीवों में भी जीवादि-पद में वेद को प्राप्त बहुत जीवों और उपशम श्रेणी से गिरने के बाद सवेद अवस्था को प्राप्त होने वाले एकादि जीवों की अपेक्षा तीन भंग घटित होते हैं। एकेन्द्रियों में एक ही भंग तथा स्त्रीवेदक आदि में तीन भंग पाये जाते हैं। जब एक वेद से दूसरे वेद में संक्रमण होता है, तब प्रथम समय में अप्रदेशत्व और द्वितीय आदि समयों में सप्रदेशत्व होता है, यों तीन भंग घटित होते हैं। नपुंसकवेद के एकवचन-बहुवचन रूप दो दण्डकों में तथा एकेन्द्रियों में 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश' यह एक भंग पाया जाता है। स्त्रीवेद और पुरुषवेद के दण्डकों में देव, पंचेन्द्रिय तिर्यंच एवं मनुष्य ही कहने चाहिए। सिद्धपद का कथन तीनों वेदों में नहीं करना चाहिए। अवेदक जीवों का कथन अकषायी की तरह करना चाहिए। इसमें जीव, मनुष्य और सिद्ध ये तीन पद ही कहने चाहिए। इनमें तीन भंग पाये जाते हैं। ___Elaboration-(12) Veda dvar-Savedak jivas (genderic beings or beings classified on the basis of their mental and physical sexual functionsmale, female and neuter) are described like sakashaayi jivas (beings with passions). To savedak jivas (genderic beings) three alternatives, including jiva (in general) are applicable because of the existence of many beings with gender and one or more in transitional state from upasham shreni (higher level of pacification; eighth and higher Gunasthans) to genderic state. For one-sensed beings there is only one alternative and for each gender including feminine there are three alternatives. This is because in these cases also there is existence of
| छठा शतक : चतुर्थ उद्देशक
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Sixth Shatak : Fourth Lesson
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