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फ्र many beings with one particular gender and one or more in transitional state from one gender to another. For the two categories of singular and plural in neuter gender as well as one-sensed beings there is only one state many sapradesh and many apradesh'. In the class of feminine and masculine genders only divine beings, five-sensed animals humans are included. Siddhas are not included in any of these three 卐 genders. Avedak jivas (non-genderic or gender transcendent beings) are to be described as akashaayi jivas (beings without passions). These include only jiva (in general), humans and Siddhas and there are alternatives (bhang).
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१३. शरीर द्वार SHARIRA DVAR (PORT OF THE BODY)
१८. [१] ससरीरी जहा ओहिओ । ओरालिय- वेउव्वियसरीराणं जीवएगिंदियवज्जो तियभंगो। आहारगसरीरे जीव- मणुएसु छब्भंगा । तेयग-कम्मगाणं जहा ओहिया ।
[ २ ] असरीरेहिं जीव - सिद्धेहिं तियभंगो।
१८. [ १ ] औधिक जीवों के समान ही सशरीर जीवों के विषय में कहना चाहिए। औदारिक और वैक्रियशरीर वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। आहारक वाले जीवों में जीव और मनुष्य में छह भंग कहने चाहिए। तैजस् और कार्मण शरीर वाले जीवों का कथन औधिक जीवों के समान कहना चाहिए।
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शरीर
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[ २ ] अशरीरी, जीव और सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए।
18. [1] Sasharira jivas (beings with a body ) should be described as aughik jivas (beings in general). For beings with Audarik and Vaikriya sharira (gross physical and transmuted body), leaving aside jiva (in general) and one-sensed beings, three alternatives should be stated. For jiva (in general) and humans among beings with ahaarak sharira (telemigratory body) six alternatives are to be stated. Beings with taijas and karman sharira (fiery and karmic bodies) should be described like फ्र aughik jivas (beings in general).
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Bhagavati Sutra (2)
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[2] Three alternatives should be stated for ashariri jivas (soul S without body), jiva ( in general) and Siddhas.
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विवेचन : १३. शरीर द्वार-सशरीर के दो दण्डकों में औधिक दण्डक के समान जीवपद में सप्रदेशत्व ही कहना चाहिए। क्योंकि सशरीरीपन अनादि है। नैरयिकादि में सशरीरत्व का बाहुल्य होने से तीन भंग और एकेन्द्रियों में 5 केवल तृतीय भंग ही कहना चाहिए। औदारिक और वैक्रियशरीर वाले जीवों में जीवपद और एकेन्द्रिय पदों में बहुत्व के कारण केवल तीसरा भंग ही पाया जाता है; क्योंकि जीवपद और एकेन्द्रिय पदों में प्रतिक्षण शरीर प्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान जीव बहुत पाये जाते हैं। शेष जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं, क्योंकि उनमें प्रतिपन्न बहुत फ्र
भगवती सूत्र (२)
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