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(१८) सूक्ष्म द्वार - सूक्ष्म जीव ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं। बादर जीवों के दो भेद हैं- (१) वीतराग बादर 5 जीव ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक हैं, (२) सराग बादर जीव इसके बन्धक हैं। नोसूक्ष्म-नोबादर अर्थात् सिद्ध 5 ज्ञानावरणीयादि सभी कर्मों के अबन्धक हैं। सूक्ष्म और बादर दोनों आयुष्य बन्धकाल में आयुष्य कर्म बाँधते हैं, दूसरे समय में नहीं । इसीलिए इनका आयुष्य कर्मबन्ध भजना से कहा गया है।
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(१९) चरम द्वार - जिसका यह भव अन्तिम भव है या होने वाला है, उसे 'चरम' कहते हैं । यहाँ 'भव्य' को 'चरम' कहा गया है। अचरम का अर्थ है - जिसका अन्तिम भव नहीं होने वाला है अथवा जिसने भवों का अन्त कर दिया है । इस दृष्टि से अभव्य और सिद्ध को यहाँ 'अचरम' कहा है। चरम जीव यथायोग्य आठ कर्मप्रकृतियों को बाँधता है और जब चरम जीव अयोगी अवस्था में हो, तब नहीं भी बाँधता । इसीलिए कहा गया है कि चरम जीव आठों कर्मप्रकृतियों को भजना से बाँधता है। जिसका कभी चरम भव नहीं होगा- ऐसा अभव्य-अचरम तो आठों प्रकृतियों को बाँधता है, और सिद्ध अचरम (भवों का अन्तकर्ता ) तो किसी भी कर्मप्रकृति को नहीं बाँधता । इसीलिए कहा गया कि अचरम जीव आठों कर्मप्रकृतियों को भजना से बाँधता है। (वृत्ति, पत्रांक २५६ से २५९ तक)
Elaboration (11) Paryaptak dvar-A being who has attained full development of physical and mental capacities including food intake and body formation is called paryaptak. One who has not attained this full development is called aparyaptak. The aparyaptak jivas acquire bondage of seven species of karmas including Jnanavaraniya karma. Paryaptak
jivas (fully developed beings) are of two kinds-vitaraag and saraag. Out
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of these vitaraag (detached) paryaptak jivas do not acquire bondage of Jnanavaraniya karma but saraag (with attachment) paryaptak jivas acquire. That is why the general statement that paryaptak jivas sometimes acquire bondage of Jnanavaraniya (knowledge obscuring) 5 harma and sometimes not. No-paryaptak-no-aparyaptak jiva ( neither 5 developed nor underdeveloped being; Siddha) does not acquire bondage of any of the eight karma species. Paryaptak and aparyaptak jivas both acquire bondage of Ayushya karma (life-span determining karma) only at the allotted time and not otherwise. That is why it is mentioned that these two sometimes acquire bondage of Ayushya karma and sometimes not.
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Bhagavati Sutra (2)
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(12) Bhashak dvar-A being capable of speech is called bhashak jiva
and that not capable of speech is called abhashak jiva. Bhashak jivas are of two kinds-vitaraag bhashak and saraag bhashak. A Vitaraag bhashak does not acquire bondage of Jnanavaraniya karma but saraag bhashak does so. That is why it is mentioned that bhashak jivas sometimes acquire bondage of Jnanavaraniya karma and sometimes do not. Abhashak jivas are of four kinds-Ayogikevali (omniscient without 5 association), Siddha ( liberated soul), Vigrahagati Samapanna (those 5
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भगवती सूत्र (२) फफफफफ
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