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[2] The same is true for all seven species of karmas except for y 5 Ayushya karma [3] As regards Ayushya karma, Sukshma jiva and 4 Baadar both sometimes acquire bondage and sometimes do not. Nosukshma-no-baadar jiva does not acquire.
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[Ans.] Gautam ! Sukshma jiva acquires bondage of Jnanavaraniya karma. Baadar jiva sometimes acquire bondage. of Jnanavaraniya karma and sometimes not. And no-sukshma-no-baadar jiva (Siddha) does not acquire.
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१९. चरम द्वार NINETEENTH PORT CHARAM (FINAL) २८. [.] णाणावरणिज्जं किं चरिमे बंधइ, अचरिमे बंधइ ?
[ उ. ] गोयमा ! अट्ठ वि भयणाए ।
२८. [ प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय (आदि अष्टविध) कर्म को चरम जीव बाँधता है, अथवा अचरम जीव बाँधता है ?
[ उ. ] गौतम ! चरम और अचरम; दोनों प्रकार के जीव, आठों कर्मप्रकृतियों को कदाचित् बाँधते
हैं, ( भवान्तकर्ता केवली की अपेक्षा) कदाचित् नहीं बाँधते ।
28. [Q. 1] Bhante ! Does a charam jiva (a being in his final birth) acquire bondage of Jnanavaraniya (knowledge obscuring) karma? Or does an acharam jiva (a being not in his final birth) acquire that?
[Ans.] Gautam ! Both charam jiva and acharam jiva sometimes acquire bondage of Jnanavaraniya karma and sometimes (in context of an omniscient terminating birth-cycles) do not.
(१२) भाषक द्वार - भाषालब्धि वाले को 'भाषक' और भाषालब्धि से विहीन को 'अभाषक' कहते हैं। भाषक के दो भेद - वीतराग भाषक और सराग भाषक । वीतराग भाषक ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बाँधते, सराग भाषक बाँधते हैं । इसीलिए कहा गया कि भाषक जीव भजना से ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं। अभाषक के चार भेद-अयोगीकेवली, सिद्ध भगवान, विग्रहगति समापन्न और एकेन्द्रिय पृथ्वीकायिकादि के जीव । इनमें से प्रथम
5 दो तो ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बाँधते, किन्तु शेष दो बाँधते हैं। आदि के दोनों अभाषक वेदनीय कर्म को नहीं 5
विवेचन : ( ११ ) पर्याप्तक द्वार-जिस जीव ने उत्पन्न होने के बाद अपने योग्य आहार - शरीरादि पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली हों, वह पर्याप्तक और जिसने पूर्ण न की हों, वह अपर्याप्तक कहलाता है। अपर्याप्तक जीव फ्र ज्ञानावरणीयादि सात कर्म बाँधते हैं। पर्याप्तक जीवों के दो भेद - वीतराग और सराग। इनमें से वीतराग पर्याप्तक 5 ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बाँधते, सराग पर्याप्तक बाँधते हैं। कहा गया है कि पर्याप्तक भजना से ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं। नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक (सिद्ध) जीव ज्ञानावरणीयादि आठों कर्मों को नहीं बाँधते । पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनों आयुष्यबन्ध के काल में आयुष्य बाँधते हैं, दूसरे समय में नहीं, इसीलिए कहा गया है कि 5 ये दोनों आयुष्य बन्ध भजना से करते हैं।
भगवती सूत्र ( २ )
(212)
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Bhagavati Sutra (2)
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