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पावता
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(८) संज्ञी द्वार-मनः-पर्याप्ति वाले जीवों को संज्ञी कहते हैं। वीतराग संज्ञी जीव ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं 卐 बाँधते, जबकि सराग संज्ञी जीव बाँधते हैं, इसीलिए कहा है-संज्ञी जीव ज्ञानावरणीय कर्म को कदाचित् बाँधता + है, कदाचित् नहीं बाँधता, किन्तु मनःपर्याप्ति से रहित असंज्ञी जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते ही हैं। नोसंज्ञी
नोअसंज्ञी जीवों के तीन भेद होते हैं-सयोगीकेवली, अयोगीकेवली और सिद्ध भगवान, इनके ज्ञानावरणीय कर्म 卐 के बन्ध के कारण न होने से ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बाँधते। अयोगीकेवली और सिद्ध भगवान के सिवाय शेष
सभी संज्ञी जीव एवं असंज्ञी जीव वेदनीय कर्म को बाँधते हैं। पूर्वोक्त आशयानुसार संज्ञी और असंज्ञी, ये दोनों आयुष्य कर्म को भजना से बाँधते हैं। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव आयुष्य कर्म को बाँधते ही नहीं हैं।
(५) भवसिद्धिक द्वार-जो भवसिद्धिक वीतराग होते हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बाँधते, किन्तु जो 9 भवसिद्धिक सराग होते हैं, वे इस कर्म को बाँधते हैं, इसीलिए भवसिद्धिक जीव ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से
बाँधते हैं। अभवसिद्धिक तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते ही हैं, जबकि नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक (सिद्ध) ॐ जीव ज्ञानावरणीय कर्म एवं आयुष्य कर्मादि को नहीं बाँधते। भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक ये दोनों आयुष्य कर्म को पूर्वोक्त आशयानुसार कदाचित् बाँधते हैं, कदाचित् नहीं बाँधते।
(१०) दर्शन द्वार-चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी, यदि छद्मस्थ वीतरागी हों तो ज्ञानावरणीय 卐 कर्म को नहीं बाँधते, क्योंकि वे केवल वेदनीय कर्म के बन्धक होते हैं। ये यदि सरागी-छद्मस्थ हों तो इसे बाँधते
हैं। इसीलिए कहा गया है कि ये तीनों ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से बाँधते हैं। भवस्थ केवलदर्शनी और सिद्ध केवलदर्शनी, इन दोनों के ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध का हेतु न होने से, ये दोनों इसे नहीं बाँधते। चक्षुदर्शनी,
अचक्षदर्शनी और अवधिदर्शनी. छद्मस्थ वीतरागी और सरागी वेदनीय कर्म को बाँधते ही हैं। सयोगीकेवली भी ॐ वेदनीय कर्म बाँधते हैं, किन्तु अयोगीकेवली नहीं बाँधते।
Elaboration Explanation regarding acquiring and not acquiring bondage of karmas enumerated in the aforesaid six ports of influx (bandh dvar)
(5) Stree dvar-Female, male and neuter, all the three acquire bondage of Jnanavaraniya (knowledge obscuring) karma. An individual with the physical body of female, male or neuter but devoid of the feelings associated with the respective gender is called a no-stree, nopurush and no-napumsak being. This being belongs to the Anivrittibaadar Samparaya (9th level of purity) and higher Gunasthans (levels of
spiritual ascendance or level of purity of soul). Of these, a being at 4 Anivritti-baadar Samparaya (9th level of purity) and Sukshma
Samparaya (10th level of purity) acquires bondage of Jnanavaraniya karma. Those at still higher levels Upashanta Moha (11th) to Ayogi Kevali (14th) (non-genderic or gender transcendent beings) do not
acquire bondage of Jnanavaraniya karma. That is the reason for stating fi that non-genderic or gender transcendent beings sometimes acquire
Jnanavaraniya karma and sometimes not. Such beings never acquire bondage of Ayushya karma (life-span determining karma) because at the
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छठा शतक : तृतीय उद्देशक
(203)
Sixth Shatak : Third Lesson
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