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बफफफफफफफफफ [Ans.] Gautam ! The first three (with visual, without visual and with 5 avadhi perception) sometimes acquire bondage of Jnanavaraniya karma and sometimes do not. However, one with Keval-darshan does not acquire. [2] The same is true for all seven species of karmas except for 5 Vedaniya karma. [3] As regards Vedaniya karma, the first three acquire 5 the bondage but Keval-darshani sometimes acquires bondage and sometimes does not.
विवेचन : उक्त छह द्वारों में प्रतिपादित जीवों के कर्मबन्ध-अबन्ध-विषयक स्पष्टीकरण
(५) स्त्री द्वार - स्त्री, पुरुष और नपुंसक तीनों ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते हैं। जिस जीव के केवल स्त्री, फ पुरुष या नपुंसक का शरीर है, किन्तु वेद ( कामविकार) का उदय नहीं होता, उसे नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक जीव कहते हैं । वह अनिवृत्तिबादर सम्परायादि गुणस्थानवर्ती होता है। इनमें से अनिवृत्तिबादर सम्पराय और सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थानवर्ती जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धक होता है, उपशान्तमोह से अयोगकेवली गुणस्थानवर्ती (नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक होते हैं । इसीलिए कहा गया हैनोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक ज्ञानावरणीय कर्म को भजना (विकल्प) से बाँधता है। और यह ( वेदरहित) जीव आयुष्य कर्म को तो बाँधता ही नहीं है, क्योंकि निवृत्तिबादर सम्पराय से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक में आयुष्यबन्ध का व्यवच्छेद हो जाता है। स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीव आयुष्य कर्म को एक भव में एक ही बार बाँधता है, वह भी आयुष्य का बन्धकाल होता है, तभी आयुष्य कर्म बाँधता है। जब आयुष्य बन्ध काल नहीं होता, तब आयुष्य नहीं बाँधता । इसलिए कहा गया है ये तीनों प्रकार के जीव आयुष्य कर्म को कदाचित् बाँधते हैं, कदाचित् नहीं बाँधते ।
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(६) संयत द्वार - सामायिक, छेदोपस्थापनिक, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्म सम्पराय इन चार संयमों में रहने वाला संयत जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधता है, किन्तु यथाख्यात संयमवर्ती संयत जीव उपशान्तमोहादि वाला होने से ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बाँधता; इसीलिए कहा गया है-संयत भजना से ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधता है, किन्तु असंयत ( मिथ्यादृष्टि आदि जीव) और संयतासंयत (पंचम गुणस्थानवर्ती देशविरत ) जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते हैं। जबकि नोसयंत- नोअसंयत-नोसंयतासंयत (अर्थात् सिद्ध) जीव न तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं और न ही आयुष्यादि अन्य कर्म । संयत, असंयत और संयतासंयत, ये तीनों पूर्ववत् आयुष्य बन्धकाल आयुष्य बाँधते हैं, अन्यथा नहीं बाँधते ।
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(७) सम्यग्दृष्टि द्वार - सम्यग्दृष्टि के दो भेद हैं-सराग सम्यग्दृष्टि और वीतराग सम्यग्दृष्टि । जो वीतराग सम्यग्दृष्टि हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बाँधते, जबकि सराग सम्यग्दृष्टि ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते हैं। इसीलिए कहा है - सम्यग्दृष्टि ज्ञानावरणीय कर्म कदाचित् बाँधता है, कदाचित् नहीं बाँधता । मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि तो ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते ही हैं। सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव आयुष्य कर्म को कदाचित् बाँधते हैं, कदाचित् नहीं बाँधते; इस कथन का आशय यह है कि अपूर्वकरणादि सम्यग्दृष्टि जीव आयुष्य को नहीं बाँधते, जबकि इनसे भिन्न चतुर्थ आदि गुणस्थानों वाले सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि जीव पूर्ववत् आयुष्य फ बन्धकाल में आयुष्य को बाँधते हैं, दूसरे समय में नहीं बाँधते । सम्यग् - मिथ्यादृष्टि जीवों में (मिश्रदृष्टि अवस्था 5 में) आयुष्य बाँधने के अध्यवसाय-स्थानों का अभाव होने से ये आयुष्य बाँधते ही नहीं हैं।
भगवती सूत्र ( २ )
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Bhagavati Sutra (2)
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