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२] एवं आउयवज्जाओ सत्त वि।
[३] आउए हेट्ठिल्ला दो भयणाए, सम्मामिच्छदिट्ठी न बंधइ ।
१५. [ प्र. १ ] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या सम्यग्दृष्टि बाँधता है, मिथ्यादृष्टि बाँधता है अथवा सम्यग्-मिथ्यादृष्टि-बाँधता है ?
[उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को ) सम्यग्दृष्टि कदाचित् बाँधता है, कदाचित् ( वीतराग अवस्था में) नहीं बाँधता, मिथ्यादृष्टि बाँधता है और सम्यग् - मिथ्यादृष्टि भी बाँधता है।
[ २ ] इसी प्रकार आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए ।
[ ३ ] आयुष्य कर्म को नीचे के दो- सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि - भजना से बाँधते हैं (अर्थात्कदाचित् बाँधते हैं, कदाचित् नहीं बाँधते ।) सम्यग् - मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि अवस्था में) नहीं बाँधते ।
15. [Q. 1] Bhante ! Does a samyakdrishti (the righteous) acquire bondage of Jnanavaraniya (knowledge obscuring) karma? Does a mithyadrishti (the unrighteous) acquire that? Or does a samyakmithyadrishti (the righteous-unrighteous) acquire that ?
[Ans.] Gautam ! A samyakdrishti sometimes acquires bondage of Jnanavaraniya karma and sometimes (in the detached state of mind) does not. But a mithyadrishti as well as a samyak-mithyadrishti acquires that.
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[2] The same is true for all seven species of karmas except for Ayushya karma.
[3] Regarding Ayushya karma, the first two i. e. samyakdrishti (the righteous) and mithyadrishti (the unrighteous) sometimes acquire bondage and sometimes not. The samyak-mithyadrishti (the righteousunrighteous) (in the mixed state) do not acquire that.
८. संज्ञी द्वार EIGHTH PORT : SANJNI (SENTIENT)
१६. [ प्र. १ ] णाणावरणिज्जं किं सण्णी बंधइ, असण्णी बंधई, नोसण्णी - नोअसण्णी बंधइ ? [उ. ] गोयमा ! सण्णी सिय बंधइ सिय नो बंधइ, असण्णी बंधइ, नोसण्णी - नोअसण्णी न बंधइ ।
[ २ ] एवं वेयणिज्जाऽऽउगवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ । [ ३ ] वेयणिज्जं हेट्ठिल्ला दो बंधंति, उवरिल्ले भयणाए । आउगं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ ।
१६. [ प्र. १ ] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या संज्ञी बाँधता है, असंज्ञी बाँधता है अथवा नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी बाँधता है ?
[उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को ) संज्ञी कदाचित् बाँधता है, और कदाचित् ( वीतराग की अपेक्षा) नहीं बाँधता । असंज्ञी बाँधता है, और नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी (सयोगीकेवली अयोगीकेवली तथा सिद्ध) नहीं बाँधता ।
छठा शतक तृतीय उद्देशक
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(199)
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Sixth Shatak: Third Lesson
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